बिहार में प्रियंका का सियासी दांव क्या टूटेगा एनडीए का किला?

बिहार की सियासत में इस समय हलचल मची है। विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं, और ऐसे में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने 26 अगस्त 2025 को सुपौल में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में कदम रखकर नया रंग भर दिया है। राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ उनकी यह तिकड़ी मिथिलांचल की धरती पर सियासी तापमान बढ़ा रही है। हरितालिका तीज के पावन अवसर पर शुरू हुआ यह दौरा महज एक सियासी शोर नहीं, बल्कि कांग्रेस की गहरी रणनीति का हिस्सा है, जो महिलाओं, हिंदू वोटरों और सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए बीजेपी-जेडीयू के मजबूत गठजोड़ को चुनौती देने की कोशिश है। सवाल यह है कि क्या प्रियंका का यह दांव कांग्रेस की खोई जमीन वापस दिला पाएगा? या नीतीश-बीजेपी का किला अडिग रहेगा? आइए, इस दौरे के सियासी निहितार्थ और इसकी गहराई में उतरते हैं।

‘वोटर अधिकार यात्रा’ का यह दसवां दिन है। सासाराम से 17 अगस्त को शुरू हुई यह यात्रा अब मिथिलांचल की सियासी रणभूमि में दाखिल हो चुकी है। निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची से 65 लाख से अधिक नाम हटाए जाने के मुद्दे को राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ का नाम देकर इसे अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों को लामबंद करने का हथियार बनाया है। सुपौल के हुसैन चौक से शुरू होकर यह काफिला महावीर चौक, गांधी मैदान, लोहियानगर चौक और गौरवगढ़ डिग्री कॉलेज से गुजरते हुए मधुबनी की ओर बढ़ा। करीब 74 किलोमीटर का यह रास्ता लौकहा, फुलपरास, झंझारपुर, दरभंगा ग्रामीण और मधुबनी विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ता है। प्रियंका, राहुल और तेजस्वी की तिकड़ी ओपन जीप पर सवार होकर जनता से रूबरू हो रही है। प्रियंका की सादगी और आत्मविश्वास इस यात्रा को नया जोश दे रहे हैं, लेकिन इसके पीछे की रणनीति कहीं ज्यादा जटिल और दूरदर्शी है।

महिलाओं को साधने का मास्टरस्ट्रोक

प्रियंका का दौरा तीज के दिन शुरू होना संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। बिहार में महिलाएं आधी आबादी हैं, और उनका वोटिंग रिकॉर्ड पुरुषों से बेहतर रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.7% था, जबकि पुरुषों का 54.7%। नीतीश कुमार ने शराबबंदी, साइकिल योजना और जीविका जैसे कार्यक्रमों से इस वोट बैंक को मजबूत किया है। लेकिन कांग्रेस अब इसमें सेंध लगाने की जुगत में है। प्रियंका ने तीज के मौके पर महिलाओं से संवाद कर कांग्रेस की 2500 रुपये मासिक सहायता योजना को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कहा, “महिलाएं देश की रीढ़ हैं। उनका हक छीनने की साजिश को हम नाकाम करेंगे।” यह नारा भावनात्मक और सियासी दोनों स्तर पर महिलाओं को जोड़ने की कोशिश है। तीज का त्योहार बिहार की महिलाओं के लिए गहरी आस्था का प्रतीक है, और प्रियंका ने इस मौके को भुनाकर नीतीश की योजनाओं को सीधी चुनौती दी है। सियासी जानकारों का मानना है कि प्रियंका की इंदिरा गांधी जैसी छवि और उनकी सादगी बिहार की महिलाओं को आकर्षित कर सकती है। लेकिन नीतीश की योजनाओं का गहरा असर और उनकी सामाजिक इंजीनियरिंग इस रणनीति को कड़ी टक्कर देगी।

सॉफ्ट हिंदुत्व: बीजेपी को जवाब

27 अगस्त को प्रियंका सीतामढ़ी के पुनौराधाम में माता जानकी मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगी। यह कदम कांग्रेस की सॉफ्ट हिंदुत्व रणनीति का हिस्सा है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने यहां 883 करोड़ रुपये की मंदिर परियोजना का शिलान्यास किया था, जिसे बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड माना गया। प्रियंका का मंदिर दौरा उसी नैरेटिव को काउंटर करने की कोशिश है। कांग्रेस पर अक्सर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है, लेकिन प्रियंका का यह कदम हिंदू मतदाताओं को यह संदेश देता है कि पार्टी सभी की आस्था का सम्मान करती है। उत्तर प्रदेश में 2019 में प्रियंका ने मंदिर दौरे और गंगा आरती के जरिए सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाया था, जिसका असर सीमित ही सही, लेकिन दिखा। मिथिलांचल में धार्मिक भावनाएं गहरी हैं, और प्रियंका का यह कदम बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव को कमजोर करने की कोशिश है। लेकिन सियासी विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी इसे ‘नकली हिंदुत्व’ बताकर पलटवार कर सकती है। राम मंदिर आंदोलन के बाद मिथिलांचल में बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है, और प्रियंका का यह दांव कितना रंग लाएगा, यह हिंदू वोटरों की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा।

मिथिलांचल: सियासी शतरंज का मैदान

मिथिलांचल इस दौरे का केंद्र है। सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सहरसा और मुजफ्फरपुर जैसे सात जिलों में 60 विधानसभा सीटें हैं। 2020 में एनडीए ने इनमें से 40 से ज्यादा सीटें जीती थीं। मधुबनी की 10 में से 8 और दरभंगा की 10 में से 9 सीटें एनडीए के पास हैं। यह इलाका कभी कांग्रेस और राजद का गढ़ था, लेकिन नीतीश की मंडल राजनीति और बीजेपी के हिंदुत्व ने इसे बदल दिया। यहां ब्राह्मण, राजपूत, यादव, अतिपिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोटरों की अच्छी तादाद है। अतिपिछड़े 45% वोटर हैं, जिन्हें साधने के लिए राजद ने मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। यात्रा का रूट मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे झंझारपुर के मोहना और कन्हौली से गुजरता है, जहां राहुल का फोकस अल्पसंख्यकों पर है। प्रियंका की मौजूदगी इस दोहरी रणनीति को मजबूत कर रही है एक तरफ पिछड़े और मुस्लिम, दूसरी तरफ हिंदू और महिलाएं। लेकिन मिथिलांचल में एनडीए की मजबूत पकड़, खासकर जेडीयू के संजय झा और नीतीश मिश्रा जैसे नेताओं का दबदबा, इसे कठिन बनाता है।

राहुल-प्रियंका की दोहरी रणनीति

राहुल और प्रियंका की जोड़ी एक दोधारी तलवार की तरह काम कर रही है। राहुल ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को उठाकर अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों को लामबंद कर रहे हैं। 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने का मुद्दा महागठबंधन का प्रमुख हथियार है। दूसरी ओर, प्रियंका का मंदिर दौरा और तीज पर उपस्थिति हिंदू और महिला वोटरों को जोड़ने की कोशिश है। यह दोहरी रणनीति कांग्रेस की पुरानी छवि को बदलने का प्रयास है। लेकिन बीजेपी-जेडीयू का गठजोड़ इसे कड़ी चुनौती देगा। नीतीश की सामाजिक इंजीनियरिंग ने अतिपिछड़ा और महिला वोटरों को मजबूत आधार दिया है, जबकि बीजेपी का हिंदुत्व ब्राह्मण और राजपूत वोटरों को बांधे रखता है। कांग्रेस की यह रणनीति तभी कामयाब होगी, जब वह इन दोनों समुदायों में सेंध लगा पाए।
कांग्रेस की राह में रोड़े

बिहार में कांग्रेस का आधार कमजोर है। 2020 में उसने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 जीती। महागठबंधन में राजद की प्रमुखता उसे सीमित करती है। बीजेपी प्रियंका के सॉफ्ट हिंदुत्व को ‘नकली’ बताकर हमला कर सकती है, जैसा कि उसने उत्तर प्रदेश में किया। अल्पसंख्यक वोटरों में भी कांग्रेस की साख पर सवाल उठ सकते हैं, क्योंकि सॉफ्ट हिंदुत्व से उनकी नाराजगी का जोखिम है। नीतीश की शराबबंदी और अन्य योजनाएं महिलाओं में लोकप्रिय हैं, और जेडीयू का अतिपिछड़ा वोट बैंक मजबूत है। फिर भी, प्रियंका का दौरा कार्यकर्ताओं में जोश ला रहा है। लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, जो 2019 से बेहतर है। अगर यह यात्रा वोटरों को जोड़ पाई, तो कांग्रेस 25-30 सीटों तक पहुंच सकती है।

क्या है सियासी जोखिम और संभावनाएं?

प्रियंका की लोकप्रियता, खासकर महिलाओं में, एक बड़ा प्लस पॉइंट है। उत्तर प्रदेश में उन्होंने अमेठी और रायबरेली में प्रभाव डाला। बिहार में भी उनकी इंदिरा जैसी छवि काम कर सकती है। यह यात्रा 1 सितंबर तक 50 सीटों को कवर करेगी। अगर महिलाएं और हिंदू वोटर जुड़ गए, तो चुनावी समीकरण बदल सकता है। लेकिन एनडीए का मजबूत गठजोड़, नीतीश की सामाजिक इंजीनियरिंग और बीजेपी का हिंदुत्व इसे कड़ी चुनौती देगा। प्रियंका का सॉफ्ट हिंदुत्व पहले उत्तर प्रदेश में सीमित सफल रहा, लेकिन बिहार में यह कितना रंग लाएगा, यह मतदाताओं की प्रतिक्रिया पर निर्भर है।प्रियंका गांधी का बिहार दौरा कांग्रेस के लिए एक सुनहरा अवसर है। राहुल-प्रियंका-तेजस्वी की तिकड़ी मिथिलांचल में एनडीए के किले को भेदने की कोशिश में है। सॉफ्ट हिंदुत्व और महिला वोटरों पर फोकस से कुछ सीटें मिल सकती हैं, लेकिन राजद की प्रमुखता और एनडीए का दबदबा इसे सीमित कर सकता है। यह दौरा सियासी शोर तो मचा रहा है, लेकिन इसका असली असर मतपेटियों में दिखेगा। बिहार की सड़कों पर चल रहा यह काफिला नया इतिहास रच पाएगा या नहीं, यह वक्त बताएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *