भारतीय राजनीति में राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को अक्सर युवराज कहा जाता है, जो उनकी राजनीतिक विरासत को दर्शाता है। ये तीनों नेता कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख चेहरे हैं, जो विपक्षी गठबंधन इंडिया के महत्वपूर्ण स्तंभ बने हुए हैं। लेकिन सवाल यह है कि जनता का इन पर कितना भरोसा है? क्या उनकी कमजोरियां उन्हें कमजोर कर रही हैं? और क्या श्हिंदू विरोधीश् राजनीति का आरोप इनकी लोकप्रियता पर भारी पड़ रहा है? 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में ये सवाल और प्रासंगिक हो गए हैं।
2024 के चुनावों ने इन तीनों नेताओं की छवि को नया आयाम दिया। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा ने उनकी छवि को श्पप्पूश् से श्जन नेताश् में बदल दिया। एक ओपिनियन पोल के अनुसार, राहुल की विश्वसनीयता में 2024 में 20ः से अधिक की वृद्धि हुई, खासकर युवाओं और महिलाओं में। उन्होंने बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर देकर कांग्रेस को 99 सीटें दिलाईं, जो 2019 की तुलना में दोगुनी हैं। जनता का भरोसा बढ़ा है क्योंकि वे जमीन से जुड़े मुद्दों पर बोलते हैं, जैसे जाति जनगणना और महिलाओं के लिए आरक्षण। हाल ही में बिहार में श्वोट अधिकार यात्राश् के दौरान राहुल ने चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया, जिसने उन्हें विपक्ष के मजबूत चेहरे के रूप में स्थापित किया।
अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को 37 सीटों तक पहुंचाकर अपनी साख मजबूत की। 2024 के चुनावों में उन्होंने पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों (पीडीए) की राजनीति पर फोकस किया, जिससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। एक सर्वे में 54 फीसदी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने अखिलेश को मोदी के विकल्प के रूप में देखा। उनकी विकास-केंद्रित छवि, जैसे लैपटॉप वितरण और एक्सप्रेसवे निर्माण, अभी भी लोगों को याद है। हालांकि, नेपोटिज्म का आरोप उन्हें चुभता है, लेकिन 2024 में उन्होंने इसे अपनी ताकत बनाया, परिवारवाद को समाजवाद से जोड़कर।
नीतीश सरकार के समय डिप्टी सीएम रह चुके तेजस्वी यादव बिहार में रोजगार के मुद्दे पर उभरे। 17 महीनों की सरकार में उन्होंने 5 लाख नौकरियां देने का वादा निभाया, जिससे युवाओं में उनका समर्थन बढ़ा। एक पोल में 40 प्रतिशत बिहारियों ने तेजस्वी को नीतीश कुमार से बेहतर माना। हाल में उन्होंने राहुल को अगला प्रधानमंत्री बनाने की बात कही, जो इंडिया गठबंधन की एकजुटता दिखाती है। लेकिन जनता का भरोसा क्षेत्रीय है; राष्ट्रीय स्तर पर ये नेता अभी मोदी की छवि से मुकाबला कर रहे हैं।
ये नेता कहां कमजोर पड़ते हैं? सबसे बड़ी कमजोरी उनकी डायनेस्टी पॉलिटिक्स है। राहुल को अक्सर अनुभवहीन कहा जाता है, हालांकि भारत जोड़ो यात्रा ने इसे बदला। अखिलेश पर गुंडागर्दी को बढ़ावा देने का आरोप लगता है, जबकि तेजस्वी को पिता लालू की विरासत का बोझ उठाना पड़ता है। 2024 में तेजस्वी की गठबंधन रणनीति में कमजोरी दिखी, जहां उन्होंने पप्पू यादव जैसे नेताओं को अलग कर दिया, जिससे इंडिया ब्लॉक को नुकसान हुआ। ये नेता राष्ट्रीय मुद्दों पर मजबूत हैं, लेकिन स्थानीय संगठनात्मक कमजोरी उन्हें पीछे खींचती है। कांग्रेस की बैंक अकाउंट फ्रीजिंग और केजरीवाल की गिरफ्तारी जैसे मुद्दों ने उन्हें मजबूत बनाया, लेकिन ईडी-सीबीआई के दबाव में वे रक्षात्मक हो जाते हैं।
इन युवराजों के सथ सबसे विवादास्पद मुद्दा हिंदू विरोधी राजनीति का है। बीजेपी इन्हें एंटी-हिंदू बताती है। राहुल पर राम मंदिर का विरोध करने का आरोप है, लेकिन उन्होंने यात्रा में राम और हनुमान की पूजा की। अखिलेश पर बहराइच घटना में चुप रहने का आरोप लगा, जहां गिरिराज सिंह ने उन्हें एंटी-हिंदू डीएनए कहा। तेजस्वी पर भी मुस्लिम तुष्टिकरण का ठप्पा है। राहुल ने नफरत के खिलाफ मोहब्बत का नारा दिया, जो हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर देता है। 2024 में हिंदुत्व की राजनीति ने बीजेपी को 240 सीटों पर रोक दिया, जबकि इंडिया गठबंधन ने 234 सीटें जीतीं। सर्वे दिखाते हैं कि युवा और शहरी मतदाता अब आर्थिक मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं, न कि धार्मिक ध्रुवीकरण पर।
हालांकि, ये आरोप प्रभाव डालते हैं। दक्षिण भारत में हिंदी भाषियों पर हमलों में इनकी चुप्पी ने बीजेपी को हमला करने का मौका दिया। बिहार में तेजस्वी और राहुल की रैली में यह मुद्दा उठा, जहां बीजेपी ने उन्हें वोट चोर कहा। लेकिन जनता में यह आरोप कम प्रभावी साबित हो रहा है, क्योंकि लोग बेरोजगारी और महंगाई से ज्यादा परेशान हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया कि राहुल की लोकप्रियता मोदी से आगे निकल रही है, खासकर सोशल मीडिया पर। कुल मिलाकर, इन तीनों पर जनता का भरोसा बढ़ रहा है। 2025 के बिहार चुनाव में तेजस्वी की अगुवाई में इंडिया गठबंधन मजबूत चुनौती दे सकता है। कमजोरियां हैं, लेकिन वे उन्हें दूर कर रहे हैं। हिंदू विरोधी टैग राजनीतिक है, जो बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है, लेकिन आर्थिक मुद्दों के आगे यह फीका पड़ रहा है। ये युवराज अब जन राजा बनने की राह पर हैं, लेकिन रास्ता चुनौतियों से भरा है।