अमेरिका और विश्व व्यापार के मंच पर एक बार फिर से शुल्क विवाद सुर्खियों में है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी आयात शुल्क को लेकर अब अदालत ने नया मोड़ दे दिया है। सवाल यह है कि इस निर्णय का असर सिर्फ अमेरिकी उद्योगों तक सीमित रहेगा या फिर भारत जैसे उन साझेदार देशों तक भी पहुँचेगा, जिन पर पचास फीसदी तक का शुल्क लादा गया था। ट्रंप के कार्यकाल के दौरान “अमेरिका को पहले” की नीति के तहत विदेशी वस्तुओं पर कई प्रकार के शुल्क लगाए गए। इनमें इस्पात, एल्युमिनियम सहित भारत से अमेरिका जा रही कई वस्तुएँ शामिल थीं। शुल्क की ऊँचाई इतनी रही कि भारतीय व्यापारियों के लिए अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया। विशेषकर मशीन उपकरण, उद्योगिक कच्चे माल और कृषि उत्पादों पर अतिरिक्त बोझ भारतीय कंपनियों को भारी पड़ा। अमेरिका का कहना था कि विदेशी उत्पादों की भरमार से उनका घरेलू उद्योग कमजोर हो रहा है। जबकि भारत समेत कई देशों ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे अनुचित और विश्व व्यापार नियमों के विपरीत बताया। हाल ही में अमेरिकी अदालत ने इन शुल्कों की समीक्षा करते हुए कहा है कि सरकार को विदेश से आने वाले उत्पादों पर बिना ठोस कारण इतने ऊँचे शुल्क नहीं लगाने चाहिए। अदालत ने यह भी माना कि अत्यधिक शुल्क से घरेलू उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ता है और महँगाई पर असर होता है।
अब देखना यह होगा कि यह निर्णय केवल अमेरिका की आंतरिक ज़मीन पर लागू होगा या फिर उन देशों के लिए भी राहत लेकर आएगा जो लंबे समय से इन शुल्कों से परेशान हैं। विशेषकर भारत, जिसने विश्व व्यापार संगठन के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। भारत अमेरिका का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है। टेक्सटाइल, औषधि, कृषि उत्पाद और इंजीनियरी सामान भारतीय निर्यात की रीढ़ हैं। अमेरिकी शुल्कों की वजह से जहाँ भारतीय सामान महँगा हो गया, वहीं चीन और वियतनाम जैसे देशों को भी चुनौती झेलनी पड़ी। भारत ने कई बार अमेरिका से द्विपक्षीय बातचीत कर शुल्क कम करने की माँग की। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने इसे घरेलू सुरक्षा और उद्योग संरक्षण का मामला बताते हुए ज्यादा ढील नहीं दी। अब जबकि अदालत का कहना है कि इतने ऊँचे शुल्क उचित नहीं, तो भारत को भी उम्मीद जगी है कि आने वाले महीनों में राहत का रास्ता बनेगा।
यदि अमेरिका शुल्क कम करता है तो भारतीय उत्पाद फिर से अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त पा सकते हैं। औषधि, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ और कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ेगा। साथ ही डॉलर में कमाई बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिलेगा। दूसरी ओर, यदि अमेरिका सिर्फ अपने घरेलू उद्योगों के संदर्भ में ही राहत लागू करता है और भारतीय सामान को इससे बाहर रखता है, तो भारत को फिर विश्व व्यापार संगठन या द्विपक्षीय राजनीतिक दबाव के रास्ते ही आगे बढ़ना होगा।अमेरिका में भी इस विषय पर मतभेद हैं। कुछ उद्योगपति मानते हैं कि शुल्क कम होने से विदेशी सामान सस्ता हो जाएगा और उनका कारोबार प्रभावित होगा। वहीं उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि इससे सामान्य परिवारों को राहत मिलेगी, क्योंकि महँगाई में सीधी गिरावट दिखेगी। भारत में निर्यातक समुदाय इसका स्वागत कर रहा है। उनका कहना है कि ट्रंप काल की नीतियों ने भारतीय उद्योग को बहुत नुकसान पहुँचाया। अब यदि राहत मिलती है, तो भारतीय उत्पाद अमेरिका में फिर से अपनी जगह बना पाएँगे। अमेरिकी अदालत का फैसला निश्चित रूप से दिशा बदलने वाला है। हालांकि, अंतिम निर्णय अभी सरकार के हाथ में है। यदि अदालत के आदेश का पालन कर शुल्क घटता है, तो यह भारत समेत उन सभी देशों के लिए एक बड़ी जीत होगी, जिन्हें अब तक अनुचित शुल्क झेलने पड़े हैं।
भारत को इस मौके का रणनीतिक उपयोग करना चाहिए। सरकार को अमेरिका से त्वरित बातचीत कर यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय उत्पादों पर भी समान राहत दी जाए। साथ ही विश्व व्यापार संगठन के मंच पर भारत को दबाव बनाए रखना होगा ताकि भविष्य में इस तरह के विवादों से पहले ही बचा जा सके। ट्रंप के शुल्क युद्ध ने वैश्विक व्यापार संतुलन को हिला दिया था। अब अदालत का हस्तक्षेप उम्मीद की एक किरण लेकर आया है। यह देखना रोचक होगा कि क्या भारत को वास्तव में राहत मिलेगी या फिर यह सिर्फ एक आंतरिक अमेरिकी मामला रह जाएगा। फिलहाल भारतीय उद्योग और नीति निर्माता दोनों इस फैसले को बारीकी से देख रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि आने वाले समय में व्यापार के लिए नई राह खुलेगी।