ट्रंप की पाक के सहारे भारत को सबक सिखाने की साजिश

संजय सक्सेना,लखनऊ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के खिलाफ लगातार जहर उगल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दबाव में लेने की नाकाम कोशिश के बाद अब टंªप भारत के खिलाफ तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। हाल के टंªप के कदमों ने भारत को थोड़ा असहज जरूर कर दिया था,लेकिन भारत इन विषम परिस्थितियों में नया रास्ता तलाशने में लगा है।अर्थशास्त्री कहते हैं ट्रंप के पाकिस्तान के प्रति बढ़ते झुकाव और भारत पर लगाए गए 25 फीसदी टैरिफ ने न केवल द्विपक्षीय संबंधों में खटास ला दी थी, बल्कि एक नई राजनीतिक उलझन को भी जन्म दिया था। ट्रंप का यह कदम भारत को सबक सिखाने की कोशिश थी, लेकिन यह सवाल उठ रहा था कि क्या यह रणनीति अमेरिका के लिए ही उलटी पड़ सकती है? और भारत इस साजिश से कैसे बाहर निकलेगा?

सब कुछ तब शुरू हुआ जब ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में भारत को महान दोस्त कहने के बाद तीखी टिप्पणियां कीं। उन्होंने भारत के रूस से तेल और हथियार खरीदने पर आपत्ति जताई और फिर भारत-पाकिस्तान के बीच एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। यह भारत के लिए अप्रत्याशित था। ट्रंप ने न केवल पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया, बल्कि पाकिस्तान के साथ एक बड़े व्यापारिक समझौते की घोषणा भी की। इस समझौते में तेल और क्रिप्टो कारोबार जैसे क्षेत्र शामिल थे, जिसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने ऐतिहासिक करार दिया। ट्रंप ने तो यहां तक कह डाला कि एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा। यह बयान भारत के लिए एक तमाचे की तरह था।

नई दिल्ली में यह साफ था कि ट्रंप भारत को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखना चाहते थे, लेकिन उनकी रणनीति में पाकिस्तान को एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। भारत के विदेश मंत्रालय ने तुरंत जवाब दिया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी समझौता द्विपक्षीय होगा, इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए साफ किया कि भारत ने किसी बाहरी दबाव में आकर सीजफायर नहीं किया। यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का एक मजबूत संदेश था।

लेकिन चुनौती यहीं खत्म नहीं हुई। ट्रंप प्रशासन ने भारत की छह कंपनियों पर ईरान से व्यापार के लिए प्रतिबंध लगाए और चाबहार पोर्ट परियोजना की समीक्षा की बात कही। यह भारत के लिए रणनीतिक झटका था, क्योंकि चाबहार अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का एक महत्वपूर्ण रास्ता था। इसके साथ ही, ट्रंप ने पाकिस्तान को एफ-16 के रखरखाव के लिए 40 करोड़ डॉलर की सहायता दी और काबुल हमले के एक आतंकी को पकड़ने में पाकिस्तान की मदद की सराहना की। ये कदम भारत को अलग-थलग करने की कोशिश का हिस्सा लग रहे थे।

भारत ने इस स्थिति को गंभीरता से लिया। रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के बीच ताबड़तोड़ बैठकें हुईं। भारत की रणनीति स्पष्ट थीरू वह न तो ट्रंप के दबाव में झुकेगा और न ही अपनी स्वतंत्र नीति से समझौता करेगा। भारत ने तुरंत रूस और फ्रांस के साथ अपने रक्षा सौदों को और मजबूत किया। रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी तेज की गई, जबकि फ्रांस के साथ राफेल जेट्स की खरीद पर बातचीत को अंतिम रूप दिया गया। भारत ने अपनी कूटनीतिक पहुंच का भी विस्तार किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ब्रिक्स देशों के साथ बैठकें कीं और भारत की स्थिति को मजबूती से रखा।

आर्थिक मोर्चे पर, भारत ने ट्रंप के टैरिफ का जवाब देने के लिए अपनी रणनीति तैयार की। वाणिज्य मंत्रालय ने स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर भारत अभियान को तेज करने का फैसला किया। फार्मा, स्टील, और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया। भारत ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ व्यापार समझौतों पर जोर दिया।

ट्रंप की रणनीति का एक पहलू यह भी था कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को भुनाना चाहते थे। लेकिन भारत ने इस जाल में फंसने से इनकार कर दिया। कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश को भारत ने ठुकरा दिया। इसके बजाय, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी स्थिति को और मजबूत किया। भारतीय राजनयिकों ने वैश्विक मंचों पर स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है।

ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम अमेरिका के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता था। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर थी, और अमेरिकी सहायता के बावजूद उसकी स्थिरता संदिग्ध थी। इसके विपरीत, भारत की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को और मजबूत कर रही थी। ट्रंप की नीति से भारत को अल्पकालिक नुकसान हो सकता था, लेकिन दीर्घकाल में यह अमेरिका के लिए ही उलटा पड़ सकता था। भारत ने अपनी कूटनीति और आर्थिक रणनीति को तेज करते हुए यह साफ कर दिया कि वह किसी भी ष्सबकष् को स्वीकार नहीं करेगा।

जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, नई दिल्ली में विश्वास बढ़ रहा था। भारत ने न केवल ट्रंप की चुनौतियों का सामना करने की तैयारी कर ली थी, बल्कि वह एक नई वैश्विक भूमिका के लिए भी तैयार था। ट्रंप की रणनीति ने भारत को और अधिक आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से मजबूत बनाने का अवसर दे दिया था। यह एक ऐसा सबक था, जो शायद ट्रंप ने नहीं सोचा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *