समाचार मंच
इंडिया गठबंधन और उसमें भी कांग्रेस के नेताओं को हर मुद्दे को विवादित बनाने में महारथ हासिल हैै। हर समय मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाला विपक्ष संवैधानिक संस्थाओं पर भी हमला बोलता रहता है। खासकर किसी भी चुनाव में अपने कर्मो से मिली शिकस्त के बाद ईवीएम मशीन का रोना रोना तो विपक्ष की आदत बन गई है। विपक्ष लगातार ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराये जाने की मांग करता रहता है,लेकिन तेलंगाना की तीन विधान परिषद की सीटों के लिये जब वहां(तेलंगाना) की कांग्रेस सरकार ने बैलेट पेपर से चुनाव कराया तो भी कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं लगा। तेलंगाना विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी की उल्लेखनीय सफलता ने राज्य की राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत दिए हैं। इस चुनाव में भाजपा ने तीन में से दो सीटों पर विजय प्राप्त की, जबकि एक सीट पर बीजेपी समर्थित प्रत्याशी ने जीत हासिल की जिससे सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और पूर्व सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को बड़ा झटका लगा है। इन तीन सीटों के लिये 27 फरवरी 2025 को आयोजित हुआ था।
सबसे पहले मेड़क-निजामाबाद-आदिलाबाद-करीमनगर स्नातक निर्वाचन क्षेत्र सीट की बात की जाये तो यहां पर भाजपा उम्मीदवार चिन्नामेल अंजी रेड्डी ने कांग्रेस के वी. नरेंद्र रेड्डी को 5,000 से अधिक मतों से पराजित किया। अंजी रेड्डी को 97,880 वोट मिले, जबकि नरेंद्र रेड्डी दूसरे स्थान पर रहे। वहीं यहीं की दूसरी मेड़क-निजामाबाद-आदिलाबाद-करीमनगर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र सीट की बात कि जाये तो यहां भाजपा समर्थित मलका कोमारैया विजयी हुए, जिससे पार्टी को एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली। तीसरी वारंगल-खम्मम-नलगोंडा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार श्रीपाल रेड्डी पिंगिली ने जीत दर्ज की, जो भाजपा के लिए अप्रत्यक्ष रूप से लाभकारी सिद्ध हुई। देशभर में बैलेट पेपर से चुनाव कराये जाने की मांग करने वाली कांग्रेस के नेता अब इस बात का जबाव नहीं दे पा रहेे है बैलेट पेपर से भी वह क्यों चुनाव नहीं जीत पाय है,जबकि तेलंगाना में कांग्रेस की ही सरकार है।
वैसे, कांग्रेस और बीआरएस की इस चुनाव में असफलता के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। बीआरएस के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है, जिससे पार्टी की आंतरिक संरचना कमजोर हुई है। बीआरएस के राज्यसभा सदस्य के. केशव राव और उनकी बेटी विजया लक्ष्मी आर गडवाल ने कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी को बड़ा झटका दिया। वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनता में बढ़ते असंतोष ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया। कांग्रेस द्वारा किए गए वादों को पूरा न करने और भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी की साख को नुकसान पहुंचाया। इन चुनावों में बीआरएस ने उम्मीदवार नहीं उतारे, जिससे भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ। बीआरएस की इस रणनीति ने भाजपा को लाभ पहुंचाया।
उधर,ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने इन चुनावों में सीधे तौर पर भाग नहीं लिया, लेकिन भाजपा की सफलता से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में उनकी भी पकड़ कमजोर हो रही है। भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता ने एआईएमआईएम के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी सेंध लगाई है, जिससे ओवैसी की पार्टी के लिए भविष्य की राजनीति में चुनौतियां बढ़ सकती हैं। भाजपा की इस सफलता के पीछे उनकी सटीक रणनीति और जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत शामिल है। भाजपा ने राज्य में व्यापक प्रचार अभियान चलाया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया, जिससे जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ी। भाजपा ने राज्य में अपने संगठन को मजबूत किया, जिससे उन्हें बूथ स्तर पर लाभ मिला।
लब्बोलुआब यह है कि इन चुनाव परिणामों से संकेत मिलता है कि तेलंगाना में भाजपा की पकड़ मजबूत हो रही है, जो आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए सकारात्मक संकेत है। कांग्रेस और बीआरएस के लिए यह समय आत्ममंथन का है, ताकि वे अपनी रणनीतियों में सुधार कर सकें। ओवैसी की पार्टी को भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे।वहीं कहा यह भी जा रहा है कि तेलंगाना विधान परिषद चुनाव 2025 के परिणाम राज्य की राजनीति में नए समीकरणों की ओर संकेत कर रहे हैं, जहां भाजपा एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रही है।