
मुलायम सिंह यादव के दौर में समाजवादी पार्टी का सियासी एजेंडा काफी व्यापक था, जिसमें ठाकुर वोटरों की अहम भूमिका होती थी। उस दौर में सपा के मजबूत स्तंभों में रेवती रमण सिंह, मोहन सिंह और अमर सिंह जैसे ठाकुर नेता शामिल थे। यादव और मुस्लिम के बाद ठाकुर समाज सपा का तीसरा सबसे बड़ा वोटबैंक माना जाता था। मुलायम सिंह अपनी राजनीति में समीकरण साधने में माहिर थे और इसी रणनीति से उन्होंने लंबे समय तक अपनी पकड़ बनाए रखी। लेकिन अब उनके बेटे और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘पीडीए’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का दांव आजमाने की रणनीति अपनाई है। इस बीच, सपा सांसद रामजीलाल सुमन का संसद में दिया गया एक बयान विवादों में आ गया है, जिसने राजनीतिक हलकों में तूफान खड़ा कर दिया है और अखिलेश यादव को भी मुश्किल में डाल दिया है।
सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में बोलते हुए कहा था कि बीजेपी के नेताओं का तकियाकलाम हो गया है कि मुसलमानों को बाबर का डीएनए कहा जाए। उन्होंने कहा कि बार-बार इस बात को दोहराया जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि बाबर को हिंदुस्तान लाने वाला कौन था? उन्होंने अपने बयान में कहा कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को राणा सांगा ने बुलाया था। इस बयान के बाद बीजेपी ने आक्रामक रुख अपनाया और इसे हिंदू विरोधी करार दिया। वहीं, राजपूत संगठनों ने भी इस बयान का विरोध किया और करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने रामजीलाल सुमन के घर पर हमला कर दिया।
इस विवाद के बाद सपा असहज स्थिति में आ गई है। पार्टी ने अब तक ठाकुर समाज के वोटों को साधने की कोशिश की थी, लेकिन अब यह विवाद सपा की इस रणनीति पर असर डाल सकता है। बीजेपी इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए सपा को हिंदू विरोधी साबित करने में लगी है। बीजेपी का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा हिंदू राष्ट्रवीरों का अपमान किया है और बाबर जैसे आक्रांताओं का महिमामंडन किया है। बीजेपी नेता इसे सपा की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं, जिसके तहत वह तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो लोग भारत के महापुरुषों का अपमान करते हैं और आक्रांताओं का महिमामंडन करते हैं, उन्हें यह नया भारत कतई स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि जो लोग हमारी संस्कृति और आस्था पर प्रहार करने वालों की तारीफ करते हैं, वे देशद्रोह की नींव को मजबूत कर रहे हैं और ऐसे लोगों को यह देश स्वीकार नहीं करेगा।
सपा को जब इस बयान से होने वाले नुकसान का अहसास हुआ तो अखिलेश यादव ने तुरंत डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश शुरू कर दी। उन्हें लगा कि अगर ठाकुर वोट बैंक खिसक गया तो बीजेपी को फायदा हो सकता है। इसी वजह से उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी सामाजिक न्याय और समतामूलक समाज में विश्वास करती है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य किसी भी इतिहास पुरुष का अपमान करना नहीं है और सपा मेवाड़ के राजा राणा सांगा की वीरता और राष्ट्रभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे सांसद ने केवल इतिहास की एकपक्षीय व्याख्या का उदाहरण देने की कोशिश की थी।
इस बीच, करणी सेना के हमले के बाद सपा ने इसे एक नए राजनीतिक एंगल में ढालने की कोशिश की। अखिलेश यादव ने इसे दलित बनाम ठाकुर विवाद का रंग देने की कोशिश की और कहा कि करणी सेना का हमला इसलिए हुआ क्योंकि रामजीलाल सुमन एक दलित हैं। उन्होंने कहा कि दलित होने की वजह से ही उनके घर पर हमला किया गया। सपा के अन्य नेताओं ने भी इसी तरह के बयान दिए और इसे दलित उत्पीड़न का मामला बना दिया।
सपा महासचिव रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव भी इस मुद्दे को लेकर सक्रिय हो गए। दोनों नेता आगरा पहुंचे और रामजीलाल सुमन के परिवार से मुलाकात की। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने करणी सेना के हमले की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर बीजेपी पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी दलितों के खिलाफ साजिश कर रही है और ठाकुर समाज को भड़काने का काम कर रही है।
इस घटना के बाद दलित संगठनों में भी गुस्सा देखा जा रहा है। कई दलित संगठनों ने करणी सेना के खिलाफ प्रदर्शन किया और इसे दलितों पर अत्याचार करार दिया। वहीं, बीजेपी इस मुद्दे को भुनाने में लगी हुई है और समाजवादी पार्टी को हिंदू विरोधी साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है।
इस पूरे विवाद का असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ सकता है। सपा पहले ही मुस्लिम, पिछड़ा और दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रही है, लेकिन इस बयान से ठाकुर समाज का एक बड़ा वर्ग सपा से दूर हो सकता है। बीजेपी इसे पूरी तरह भुनाने की कोशिश कर रही है और यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि सपा केवल तुष्टिकरण की राजनीति करती है और हिंदू समाज के खिलाफ बयानबाजी करती है।
अखिलेश यादव की राजनीति के लिए यह विवाद एक बड़ी चुनौती बन सकता है। जिस ‘पीडीए’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर वह काम कर रहे हैं, वह बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के सामने कितना टिक पाएगा, यह देखने वाली बात होगी। सपा के लिए यह जरूरी होगा कि वह ठाकुर समाज की नाराजगी को दूर करे, नहीं तो इसका खामियाजा आगामी चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।
इस पूरे विवाद के बाद अब यह साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरण कितने महत्वपूर्ण हैं और पार्टियां किस तरह से उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं। बीजेपी अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ा रही है, जबकि सपा ‘पीडीए’ फॉर्मूले के जरिए अपने वोट बैंक को मजबूत करने में जुटी है। लेकिन रामजीलाल सुमन के बयान से पैदा हुए इस विवाद ने सपा को बैकफुट पर धकेल दिया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव इस संकट से कैसे बाहर निकलते हैं।