सेना ने यासिर और अबू हमजा समेत तीन आतंकियों को मार गिराया

जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के घने जंगलों में आज एक बार फिर सेना और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी और रणनीतिक कौशल का परिचय देते हुए तीन खूंखार आतंकवादियों को मार गिराया। इनमें यासिर और अबू हमजा जैसे कुख्यात नाम शामिल थे, जो जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े थे। यह मुठभेड़ उस समय शुरू हुई जब सुरक्षा बलों को खुफिया जानकारी मिली कि बिलावर के जंगली इलाकों में कुछ आतंकवादी छिपे हुए हैं, जो किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की फिराक में हैं। इस सूचना के आधार पर सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने तुरंत एक सघन तलाशी अभियान शुरू किया। यह ऑपरेशन न केवल चुनौतीपूर्ण था, बल्कि बेहद जोखिम भरा भी था, क्योंकि जंगल का इलाका आतंकियों के लिए छिपने और हमला करने का एक माकूल ठिकाना था।
सुरक्षा बलों ने रात के अंधेरे में ऑपरेशन शुरू किया। सूत्रों के अनुसार, आतंकियों ने पहले ही जंगल में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी और उनके पास भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद था। जैसे ही सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी शुरू की, आतंकियों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। यह गोलीबारी इतनी तीव्र थी कि कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। सेना की 1-पैरा, 22 गढ़वाल राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने मिलकर इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। जवानों ने न केवल अपनी स्थिति को बनाए रखा, बल्कि आतंकियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस मुठभेड़ में यासिर और अबू हमजा के साथ एक अन्य आतंकी भी मारा गया, जिनकी पहचान अभी पूरी तरह से उजागर नहीं हुई है।
यह ऑपरेशन लगभग 30 घंटे तक चला, जिसमें सुरक्षा बलों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जंगल का घना इलाका, अंधेरा और आतंकियों की रणनीति ने इस अभियान को और जटिल बना दिया था। इसके बावजूद, सेना ने अपनी सूझबूझ और साहस का परिचय देते हुए आतंकियों को एक-एक कर ढेर कर दिया। इस दौरान एक स्थानीय महिला की गवाही ने भी इस ऑपरेशन को एक नया आयाम दिया। उसने बताया कि वह अपने पति के साथ जंगल में थी, जब उसने कुछ संदिग्ध गतिविधियां देखीं। उसकी सूचना ने सुरक्षा बलों को आतंकियों की सटीक लोकेशन तक पहुंचने में मदद की। इस महिला की हिम्मत और सतर्कता ने न केवल एक बड़े खतरे को टालने में मदद की, बल्कि यह भी साबित किया कि स्थानीय लोग भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
मुठभेड़ के बाद सुरक्षा बलों ने इलाके से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किया, जिसमें एके-47 राइफलें, ग्रेनेड और अन्य विस्फोटक शामिल थे। यह बरामदगी इस बात का संकेत थी कि आतंकी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। सूत्रों के अनुसार, ये आतंकी जम्मू क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे और संभवतः किसी बड़े हमले की साजिश रच रहे थे। सेना के इस सफल ऑपरेशन ने न केवल आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया, बल्कि क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हालांकि, यह जीत बिना बलिदान के नहीं मिली। इस मुठभेड़ में जम्मू-कश्मीर पुलिस के चार जवान शहीद हो गए, जिनमें से तीन के शव बरामद किए गए, जबकि चौथे की तलाश जारी है। इन जवानों की शहादत ने एक बार फिर यह साबित किया कि देश की सुरक्षा के लिए हमारे जवान अपनी जान की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटते। डीजीपी नलिन प्रभात ने इन जवानों की बहादुरी की सराहना करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को और मजबूती से जारी रखेगी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब तक सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन देने वाले तत्वों का पूरी तरह से खात्मा नहीं हो जाता, तब तक यह युद्ध जारी रहेगा।
इस मुठभेड़ ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी गतिविधियों पर ध्यान खींचा है। हाल के महीनों में, खासकर कठुआ, राजौरी और किश्तवाड़ जैसे क्षेत्रों में आतंकी हमलों और घुसपैठ की कोशिशों में वृद्धि देखी गई है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सीमा पार से लगातार आतंकियों को भेजने की कोशिश की जा रही है, और इसके लिए लॉन्चिंग पैड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तरह के अभियानों से न केवल आतंकियों को खत्म किया जा रहा है, बल्कि उनकी सप्लाई चेन और नेटवर्क को भी कमजोर किया जा रहा है। यह मुठभेड़ जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने की दिशा में एक और कदम है। स्थानीय लोगों का सहयोग, सेना की तत्परता और पुलिस की बहादुरी ने मिलकर एक बार फिर यह साबित किया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई अटल है। इस ऑपरेशन ने न केवल आतंकियों को सबक सिखाया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

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