
संभल की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह कोई राजनीतिक बयान या आंदोलन नहीं, बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा मस्जिद का नाम बदलना है। अब इस संरक्षित स्मारक को “शाही जामा मस्जिद” नहीं बल्कि “जुमा मस्जिद” के नाम से पहचाना जाएगा। एएसआई की ओर से नीले रंग का एक नया बोर्ड तैयार किया गया है, जिस पर स्पष्ट रूप से “भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संरक्षित स्मारक, जुमा मस्जिद, संभल” लिखा गया है। यह बोर्ड जल्द ही मस्जिद के मुख्य द्वार के पास लगाया जाएगा। वर्तमान में यह बोर्ड मस्जिद के पास बनी पुलिस चौकी में सुरक्षित रखा गया है। एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि यह बदलाव मस्जिद की ऐतिहासिक पहचान को सटीक रूप में दर्शाने के लिए किया गया है।
दरअसल, एएसआई के रिकॉर्ड में इस मस्जिद का नाम शुरू से ही “जुमा मस्जिद” दर्ज है, जबकि स्थानीय लोग इसे “शाही जामा मस्जिद” के नाम से जानते रहे हैं। लंबे समय से यहां एक हरे रंग का बोर्ड लगा था, जिस पर ‘शाही जामा मस्जिद’ लिखा था, लेकिन एएसआई के मुताबिक यह नाम उनके रिकॉर्ड के अनुरूप नहीं था। अब एएसआई ने अपने दस्तावेजों और ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर मस्जिद के लिए नया बोर्ड लगवाने की प्रक्रिया शुरू की है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह मस्जिद पूरी तरह से एएसआई की निगरानी में है और कोई भी मरम्मत या बदलाव बिना अनुमति नहीं किया जा सकता।
संभल की यह मस्जिद केवल धार्मिक ही नहीं, ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि इसका निर्माण वर्ष 1526 में मीर बेग ने करवाया था। यह निर्माण बाबर के आदेश पर हुआ था, जब बाबर ने हुमायूं को संभल की जागीर सौंपी थी। बाबरनामा में भी इस मस्जिद का उल्लेख मिलता है, जिससे इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। बाद में आइन-ए-अकबरी में भी इसका जिक्र किया गया, जो मुगलकालीन स्थापत्य कला का प्रमाण है। यह मस्जिद लगभग 498 वर्ष पुरानी मानी जाती है और पिछले 104 वर्षों से इसकी देखरेख एएसआई द्वारा की जा रही है।
हालांकि यह मस्जिद कई बार विवादों का हिस्सा भी बनी है। कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि यहां पहले एक मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई। उनके मुताबिक मंदिर का अस्तित्व स्कंद पुराण, मंडलीय गजेटियर 1913 और कई अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है। स्कंद पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि कलियुग में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार संभल में होगा। गजेटियर में मोहल्ला कोटपूर्वी के पास एक प्रसिद्ध मंदिर का जिक्र किया गया है, जो अब मौजूद नहीं है। इस विवाद के चलते कोर्ट के आदेश पर मस्जिद परिसर का सर्वे भी कराया गया था, जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई लेकिन इसे लेकर दोनों पक्षों के बीच टकराव की स्थिति बनी रही।
हाल ही में जब मस्जिद के नाम में बदलाव की खबर सामने आई, तो एक बार फिर कई हलकों में प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ लोगों ने इसे एएसआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए राजनीतिक एजेंडे से जोड़ने की कोशिश की, तो वहीं एएसआई ने स्पष्ट किया कि यह कदम पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर उठाया गया है। नाम बदलने का उद्देश्य सिर्फ यह है कि जनता को यह जानकारी मिले कि यह एक संरक्षित स्मारक है और इसकी ऐतिहासिक पहचान क्या है।
इस मस्जिद को लेकर भ्रम की स्थिति पहले भी रही है। ब्रिटिश काल के प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट ए.सी.एल. कार्लाइल ने अपनी रिपोर्ट में इसे ‘जामी मस्जिद’ कहा था, जबकि कुछ स्थानीय दस्तावेजों में यह ‘शाही जामा मस्जिद’ और कहीं-कहीं ‘जुमा मस्जिद’ भी लिखी गई है। ऐसे में एएसआई ने अपने अभिलेखों में दर्ज नाम के आधार पर इसे “जुमा मस्जिद” के नाम से चिन्हित किया है, ताकि ऐतिहासिक सटीकता बनी रहे।
संभल की यह मस्जिद अब सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं रही, बल्कि यह भारत की ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है, जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी एएसआई के पास है। इसका नाम चाहे जो भी हो, इसकी दीवारों में इतिहास की कहानियाँ दर्ज हैं, जिन्हें सही रूप में सहेजना और प्रस्तुत करना ही इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। मस्जिद का नाम बदलने का यह कदम इसी दिशा में एक छोटा लेकिन अहम प्रयास माना जा सकता है।