समाजवादी पार्टी (सपा) उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक है, जिसने हमेशा यादव और मुस्लिम वोट बैंक को अपना मजबूत आधार बनाया है। लेकिन समय के साथ पार्टी में कई ऐसे मुस्लिम नेता रहे जिन्हें पार्टी ने साफ़ बाहर कर दिया जैसे दूध की मक्खी, जिनकी भूमिका परंपरागत सहायक से आगे न बढ़ पाई। खासकर आजम खान के प्रभाव और उनके समर्थकों की स्थिति पार्टी में बदलती रही। आजम खान और उनके करीबी सहयोगी मुस्लिम नेताओं की पार्टी से दूरी बढ़ती गई, और पार्टी ने नई पीढ़ी के मुस्लिम नेताओं को आगे लाने का रुख अपनाया है।अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम नेताओं की सूची में बड़े बदलाव किए हैं। विवादित और कट्टरबाज़ी के कारण आजम खान का प्रभाव घटा। साथ ही आजम खान के करीबी माने जाने वाले कई मुस्लिम नेता पार्टी से अलग होते चले गए या पार्टी ने उन्हें सक्रिय भूमिका से हटाया। इनमें लोकसभा सांसद जियाउर रहमान, राज्यसभा सांसद जावेद अली खान, कैराना की सांसद इकरा हसन और एमएलसी शाहनवाज जैसे नाम शामिल हुए। ये सभी पहले आजम खान के साथ खड़े दिखाई देते थे, लेकिन अब पार्टी की नई रणनीति में इनकी भूमिका कम हो गई है।
पार्टी अब नई पीढ़ी के मुस्लिम नेताओं को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आगे बढ़ाने पर फोकस कर रही है जो जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण से हटकर काम करें। यह देखकर कहा जा सकता है कि वे मुस्लिम नेताओं को इसलिए पार्टी से बाहर कर रहे हैं क्योंकि वे पार्टी के बड़े नेतृत्व की नई सोच के मुताबिक नहीं थे या उनकी छवि पार्टी के लिए नई रणनीति के अनुकूल नहीं बैठती थी। कुछ मुस्लिम नेता आत्म-निर्धारण कर पार्टी से दूरी बनाकर खामोशी से बाहर चले गए।पार्टी के इस फैसले को इसलिए भी समझा जा सकता है क्योंकि कुछ मुस्लिम नेता विवादास्पद बयानों या कट्टरपंथी छवि के कारण पार्टी की लोकप्रियता को नुकसान पहुंचा रहे थे। भाजपा की सूक्ष्म राजनीति और हिन्दू-मुस्लिम के विभाजन की राजनीति को देखते हुए सपा ने ऐसी स्थिति से बचने की कोशिश की ताकि वह अपनी कोर मुस्लिम वोट बैंक को न खोए।
विशेष रूप से जिन मुस्लिम नेताओं को पार्टी ने बाहर किया या जो खुद अलग हुए, उनमें आजम खान के करीबी, जैसे विधायक फहीम अंसारी, नासिर, और शाहनवाज हैं। ये अब पार्टी के मायने में उतने जरूरी नहीं माने जाते। वहीं कुछ अपेक्षाकृत नए मुस्लिम नेता, जैसे इकरा हसन, जावेद अली, और जियाउर रहमान को आगे बढ़ाकर नए जमाने के लिबरल और समावेशी सपा चेहरों को पार्टी नेतृत्व ने प्राथमिकता दी है।इस परिवर्तन ने समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेतृत्व का स्वरूप बदल दिया है, जहां कट्टरपंथी और विवादित मुस्लिम नेताओं को दूर रखकर साम्प्रदायिक एकता और विस्तारवादी राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके कारण कई पुराने मुस्लिम नेता पार्टी में अपनी पैठ खो बैठे और पार्टी “दूध की मक्खी” की तरह उन्हें बाहर कर चुकी है।समाजवादी पार्टी के इन मुस्लिम नेताओं के बाहर होने की यह कहानी राजनीतिक रणनीति, साम्प्रदायिक मतभेद और पार्टी की आगे बढ़ने की नई सोच की गवाही देती है।