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रामनगरी के साधु-संत आप रंगभरी एकादशी के दिन अपने इष्ट रामलला व उनके परम भक्त हनुमंत लला के साथ रंगों से सराबोर हो गए। नगरी के मंदिरों में साधु-संतों ने अबीर-गुलाल उड़ाकर आराध्य संग होली खेलकर रंगोत्सव की मुनादी की। फाल्गुन माह की अमावस्या को होली का त्योहार मनाया जाता है. रंगों की इस त्योहार के पहले आने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहते हैं. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है और हर माह की दोनों पक्षों की एकादशी तिथि दुनिया के पालककर्ता माने जाने वाले भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। रंगभरी एकादशी पर्व पर अयोध्या में परंपरागत रूप से सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी में सुबह नौ बजे सर्वप्रथम हनुमान जी महाराज का विधिवत पूजन-अर्चन व श्रृंगार के बाद अबीर-गुलाल लगाया गया। फिर हनुमान जी के निशान व छड़ी की पूजा-आरती की गई।
नागा साधुओं ने अपने आराध्य हनुमंत लला को अबीर-गुलाल चढ़ाकर श्रद्धा निवेदित करने के बाद शोभायात्रा निकाली। संतों ने हनुमंत लला को अबीर गुलाल अर्पित कर रामनगरी में रंगोत्सव के आगाज की अनुमति मांगी। इस दौरान मंदिर में मौजूद श्रद्धालु आराध्य की भक्ति में लीन नजर आए। जमकर अबीर-गुलाल उड़ा तो संतों के संग भक्त भी आस्था में मग्न होकर नृत्य करते दिखे। इसके बाद नागा साधुओं की टोली सड़कों पर निकली। संतों ने ढोल की थाप पर जमकर नृत्य किया। विभिन्न करतब भी दिखाए। रास्ते में जो मिला उसे अबीर-गुलाल लगाया, लोग हनुमान जी का प्रसाद समझकर आनंदित होते रहे।
शोभायात्रा सरयू तट पहुंची, जहां साधुओं ने पूजन-अर्चन व स्नान के बाद मंदिरों की ओर रुख किया। नागा-साधु संतों ने मठ-मंदिरों में जाकर विराजमान विग्रह को अबीर-गुलाल लगाते हुए होली का निमंत्रण दिया। इसके बाद पंचकोसी परिक्रमा के साथ शोभायात्रा का समापन हुआ।रंगभरी एकादशी के दिन विष्णु जी और मां लक्ष्मी के साथ-साथ शिव पार्वती व आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी का व्रत रख विधिवत पूजन करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।