समाचार मंच प्रतिनिधि
चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग कोई नया विषय नहीं है, लेकिन हाल ही में चीन द्वारा पाकिस्तान को 50ः छूट पर लड़ाकू विमानों की पेशकश एक नई रणनीतिक चाल के रूप में सामने आई है। यह न केवल दक्षिण एशिया की सामरिक स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि चीन की वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश का भी प्रतीक है। चीन की इस चालबाजी के पीछे की मंशा, इसके रणनीतिक परिणाम, भारत पर संभावित प्रभाव और वैश्विक दृष्टिकोण के बारे में समझना जरूरी है। चीन ने पाकिस्तान को अत्याधुनिक जेएफ-17 थंडर ब्लॉक-थ्री लड़ाकू विमान बेहद रियायती दर पर देने की पेशकश की है। सामान्य कीमत की तुलना में यह 50 फीसदी तक सस्ता है। इन विमानों को पाकिस्तान के वायुसेना बेड़े को मजबूत करने के लिए तैनात किया जाएगा,लेकिन भारत के सामने यह हथियार कितने कारगर होंगे यह भी देखने वाली बात होगी,क्योंकि आपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान की सेना में शामिल चीनी हथियारों के परखच्चे उड़ा दिये थे।
गौरतलब हो, पाकिस्तान लंबे समय से आर्थिक संकटों से जूझ रहा है। आईएमएफ और अन्य वित्तीय संस्थानों पर निर्भरता के कारण वह आधुनिक हथियारों की खरीद में असमर्थ रहा है। ऐसे में चीन द्वारा दी गई यह रियायत पाकिस्तान के लिए एक वरदान के समान है। इससे उसे अपनी वायु सेना को तकनीकी रूप से उन्नत करने का अवसर मिलेगा। ऐसा पाकिस्तान तो मानता है लेकिन भारत इससे जरा भी चिंतित नहीं है।
बहरहाल,जेएफ-17 थंडर ब्लॉक-थ्री विमान आधुनिक रडार सिस्टम, बेहतर मिसाइल क्षमता और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर तकनीक से लैस है। यह भारत के तेजस विमान के समकक्ष माने जाते हैं।चीन ब्रदर्स इन आर्म्स जैसे संबंधों के जरिए पाकिस्तान को अपने रक्षा उत्पादन का स्थायी ग्राहक बनाना चाहता है। यह न केवल सैन्य निर्यात को बढ़ाता है, बल्कि बीजिंग को इस्लामाबाद में प्रभाव बनाए रखने में मदद करता है। इसी के साथ चीन की पाकिस्तान में दखलंदाजी बढ़ाकर भारत को घेरने की नीति भी है। चीन, पाकिस्तान के माध्यम से भारत की पश्चिमी सीमाओं पर दबाव बनाना चाहता है। यह नीति दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक भारत को सामरिक रूप से घेरने की है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की सबसे अहम परियोजनाओं में से एक है। इसे सुरक्षित रखने के लिए पाकिस्तान की सैन्य शक्ति को बढ़ाना चीन के हित में है।
बात भारत के हितों की कि जाये तो यह सौदा भारत के लिए एक चिंता का विषय है। भारत पहले से ही दो मोर्चों पर खतरे का सामना कर रहा है। एक तरफ चीन, दूसरी तरफ पाकिस्तान। अब अगर दोनों देशों के बीच सैन्य तालमेल और घनिष्ठ होता है, तो भारत को अपनी रक्षा नीति और हथियार खरीद की रणनीति में संशोधन करना पड़ सकता है। भारत को तेजस, राफेल और एस-400 जैसे प्रणालियों के संचालन को और प्रभावी बनाना होगा, साथ ही सीमा सुरक्षा में प्रौद्योगिकीय निवेश बढ़ाना होगा।
उधर, अमेरिका और पश्चिमी देश इस डील को दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ाने वाला कदम मानते हैं। खासकर तब, जब पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति अस्थिर है और आतंकवाद विरोधी नीतियों को लेकर संदेह बना हुआ है।इसके अलावा, चीन की सैन्य बिक्री को एक कूटनीतिक साजिश का हिस्सा भी माना जा सकता है, जहां वह सस्ती बिक्री या कर्ज के जरिए देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले आता है।