एसआईआर का विरोध-इंडिया गठबंधन की कुल्हाड़ी अपने पैरों पर

पटना की सड़कों पर गर्मी की तपिश के बीच राजनीतिक उबाल चरम पर था। अगस्त 2025 का महीना बिहार विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा था, और चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) योजना ने पूरे राज्य को हिला दिया। एसआईआर मतदाता सूची की विशेष गहन संशोधन थी, चुनाव आयोग द्वारा जून 2025 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य था पुरानी 2003 की मतदाता सूची के आधार पर नई सूची तैयार करना, जहां हर मतदाता को फॉर्म भरना पड़ता और 11 विशेष दस्तावेजों में से एक जमा करना अनिवार्य था। आधार कार्ड, राशन कार्ड या पुरानी वोटर आईडी जैसे आम दस्तावेज वैध नहीं थे। चुनाव आयोग का दावा था कि इससे मृत, डुप्लिकेट और अनुपस्थित वोटर्स की सफाई होगी, लेकिन विपक्ष इसे श्वोट चोरीश् का षड्यंत्र बता रहा था।

राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव जैसे इंडिया गठबंधन के नेता इस विरोध के अगुआ बने। राहुल गांधी ने सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू की, जहां उन्होंने कहा, यह एसआईआर नहीं, बल्कि गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वोट छीनने की साजिश है। बिहार में 75 लाख प्रवासी मजदूर हैं, जो दूसरे राज्यों में काम करते हैं। वे कैसे फॉर्म भरेंगे? तेजस्वी यादव ने नवादा की रैली में जोड़ा, राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए एनडीए को उखाड़ फेंकना होगा, लेकिन पहले इस वोट चोरी को रोकना जरूरी है। अखिलेश यादव भी 28 अगस्त को यात्रा में शामिल हुए, और दिल्ली में संसद से चुनाव आयोग तक मार्च निकाला गया। मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी और अन्य सांसदों ने प्रदर्शन किया, चिल्लाते हुए, लोकतंत्र बचाओ, वोट चोरी बंद करो! लेकिन क्या यह विरोध इंडिया गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित होगा, या उन्होंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एसआईआर का विरोध करके विपक्ष ने खुद को कमजोर किया है। सबसे पहले, एसआईआर से करीब 20 लाख मृत वोटर्स और 65 लाख संदिग्ध नाम हटाए गए, जिसकी लिस्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने प्रकाशित की। विपक्ष का दावा है कि इससे गरीब वोटर्स प्रभावित होंगे, लेकिन जनता के बीच यह संदेश जा रहा है कि इंडिया गठबंधन अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों को बचाना चाहता है। बिहार में बांग्लादेशी घुसपैठ एक संवेदनशील मुद्दा है, और बीजेपी इसे भुनाने में माहिर है। तेजस्वी यादव का नाम खुद मतदाता सूची से हटने का आरोप चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया, कहते हुए कि दिखाया गया ईपीआईसी नंबर फर्जी था। इससे विपक्ष की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।

बहरहाल, यात्रा और प्रदर्शन से इंडिया गठबंधन ने एकता दिखाई, लेकिन ग्रामीण बिहार में लोग पूछ रहे हैं, अगर एसआईआर से सूची साफ हो रही है, तो विरोध क्यों? चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 99.8 प्रतिशत मतदाताओं को कवर किया गया, और 1 अगस्त को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित हुआ। विपक्ष ने क्लेम्स और ऑब्जेक्शंस में सक्रियता नहीं दिखाई। पिछले 6 दिनों में कांग्रेस और आरजेडी से जीरो शिकायतें आईं। इससे लगता है कि वे जमीन पर काम करने के बजाय सिर्फ शोर मचा रहे हैं। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने मीडिया अटेंशन तो पाई, लेकिन क्या यह वोट में तब्दील होगी? इतिहास बताता है कि चुनाव आयोग पर हमला उलटा पड़ सकता है, जैसे 2019 में ईवीएम विवाद ने विपक्ष को नुकसान पहुंचाया। बिहार की जनता, जो बेरोजगारी और प्रवासन से जूझ रही है, शायद सोचेगी कि विपक्ष चुनाव से डर रहा है। तेजस्वी की रैलियों में राहुल को पीएम फेस बताना अच्छा है, लेकिन एसआईआर विरोध से गठबंधन की छवि नकारात्मक हो गई है।

अब बात बीजेपी की रणनीति की। भाजपा एसआईआर पर हो रही राजनीति से जमकर फायदा उठाना चाहती है। सबसे पहले, वे चुनाव आयोग का बचाव करके खुद को संवैधानिक दिखा रही हैं। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, विपक्ष राज्य विधानसभाएं भंग कर चुनाव लड़ ले, अगर इतना विश्वास है। यह विरोध घुसपैठियों को बचाने के लिए है। इससे बीजेपी राष्ट्रवाद का कार्ड खेल रही है। उसका मकसद बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनाकर मुस्लिम-विरोधी वोटर्स को लुभाना है। बिहार में एनडीए पहले से सत्ता में है, और एसआईआर से साफ सूची उनके वोट बैंक को मजबूत करेगी। मोदी की रैलियां मोटिहारी और सीवान में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की घोषणा के साथ एसआईआर को यह कहते हुए जोड़ रही हैं कि हम विकास और सुरक्षा दोनों देते हैं।

बीजेपी की रणनीति बहुआयामी है। पहले, विपक्ष को अराजक दिखाना। राहुल-तेजस्वी को यूपी के फेल दो लड़के कहकर मजाक उड़ाना। दूसरे, एसआईआर को श्पारदर्शिता का प्रतीक बनाना, जहां 78,000 बीएलओ और 1.60 लाख बीएलए शामिल थे। तीसरे, सोशल मीडिया पर प्रोपेगैंडा एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट्स से विपक्ष को वोट चोर बताना। चौथे, चुनाव में बेरोजगारी के बजाय घुसपैठ पर फोकस। अगर एसआईआर से 65 लाख नाम हटे, तो बीजेपी दावा करेगी कि उन्होंने अवैध वोटर्स को रोका, जो उनके हिंदुत्ववादी आधार को खुश करेगा। अंत में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नाम हटाये गये लोगों की लिस्ट प्रकाशित होने से पारदर्शिता का क्रेडिट बीजेपी को मिलेगा।

 

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