नागपुर हिंसा: धार्मिक और सामाजिक सौहार्द को चुनौती देने वाला विवाद

नागपुर हिंसा: धार्मिक और सामाजिक सौहार्द को चुनौती देने वाला विवाद

अजय कुमार,लखनऊ

नागपुर, महाराष्ट्र, में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शन ने शहर के माहौल को तनावपूर्ण बना दिया। यह हिंसा तब भड़की जब एक प्रदर्शनकारियों के समूह ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग की। इसके साथ ही अफवाहें फैलीं कि प्रदर्शन के दौरान धर्मग्रंथ को जलाया गया था, जिससे मुसलमान समुदाय के बीच आक्रोश फैल गया और स्थिति बिगड़ गई। सोमवार की रात यह घटनाएँ महल क्षेत्र में शुरू हुईं, और बाद में चिटनिस पार्क, शुक्रवारी तालाब रोड, और अन्य इलाकों में हिंसा फैल गई। इस हिंसा के दौरान कई लोग घायल हुए, जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे। पुलिस को स्थिति पर काबू पाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और लाठीचार्ज करना पड़ा। उपद्रवियों ने न केवल सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया, बल्कि घरों और दुकानों में तोड़फोड़ भी की और वाहनों में आग लगा दी।

हिंसा के बाद पुलिस ने महल क्षेत्र और आसपास के इलाकों में सख्ती से कर्फ्यू लागू कर दिया। प्रशासन ने इलाके में अतिरिक्त पुलिस बलों की तैनाती की और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हुआ, और पुलिस ने कई वीडियो और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपियों की पहचान करना शुरू किया। इस बीच, एक राजनीतिक उबाल भी देखने को मिला, जहां विपक्षी दलों ने राज्य सरकार और पुलिस की नाकामी को लेकर हमले किए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, देवेंद्र फडणवीस, और उपमुख्यमंत्री, एकनाथ शिंदे, ने हिंसा की कड़ी निंदा की और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया। इसके साथ ही इस घटना के राजनीतिक पहलू पर भी बहस शुरू हो गई, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए।

महाराष्ट्र की यह घटना एक खास तरह की साजिश की ओर इशारा करती है, जिसका उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना था। औरंगजेब की कब्र के बारे में वाद-विवाद और विरोध प्रदर्शन कई सालों से चल रहे हैं, लेकिन हाल की हिंसा ने इसे एक नई दिशा दी। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे संगठनों ने इस कब्र को हटाने की मांग की थी, जिसे वे एक “अत्याचारी शासक” का प्रतीक मानते हैं। उनका तर्क था कि औरंगजेब ने हिंदू धर्म के अनुयायियों पर कई अत्याचार किए थे, और उसकी कब्र इस इतिहास का प्रतीक है। इस मांग को लेकर इन संगठनों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन भी किया। इसी प्रदर्शन के दौरान अफवाहें फैलीं कि धर्मग्रंथ को जलाया गया, जो स्थिति को और भी बिगाड़ गया। प्रदर्शनकारियों का गुस्सा एक ओर बढ़ा और हिंसा में बदल गया।

प्रदर्शनकारियों ने न केवल सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया, बल्कि पुलिसकर्मियों पर भी हमला किया। नागपुर पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि इस हिंसा में पुलिस के 33 कर्मी घायल हुए, जिनमें से कुछ गंभीर रूप से घायल हुए। पत्थरबाजी और तोड़फोड़ के दौरान कई गाड़ियाँ और सार्वजनिक उपकरण भी जलाए गए। पुलिस ने छानबीन अभियान चलाया और वीडियो फुटेज के आधार पर उपद्रवियों की पहचान की। पुलिस ने 15 लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन फिर भी कई आरोपियों की तलाश जारी है। जांच में यह बात सामने आई कि प्रदर्शनकारियों ने पहले से तय कर रखा था कि उन्हें किन इलाकों में हमला करना है, और यह सब एक सुनियोजित योजना का हिस्सा था।

राज्य सरकार ने स्थिति को काबू करने के लिए कड़ी कार्रवाई का वादा किया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में बयान दिया कि यह एक सुनियोजित हमला था और इसके पीछे किसी विशेष समूह का हाथ हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस हिंसा के दौरान पत्थर, शस्त्र और पेट्रोल बमों का इस्तेमाल किया गया था, जो यह संकेत देता है कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति जो कानून-व्यवस्था को अपने हाथ में लेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस घटना के बाद भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया और कर्फ्यू लगा दिया गया।

इसी बीच, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग फिर से उठाई और कहा कि यह केवल महाराष्ट्र के इतिहास का एक धब्बा नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की संस्कृति के लिए भी एक शर्मनाक प्रतीक है। शिंदे ने कहा कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को नष्ट किया और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को छीन लिया। उन्होंने कहा कि औरंगजेब का महिमामंडन करना किसी भी भारतीय के लिए उचित नहीं है, क्योंकि उसकी क्रूरता ने लाखों लोगों की जिंदगियाँ प्रभावित की थीं। शिंदे ने यह भी कहा कि इस हिंसा के पीछे किसी राजनीतिक दल का हाथ हो सकता है, जो इस विवाद को भड़काकर राज्य में असंतोष फैलाना चाहता है।

वहीं, विपक्षी दलों ने राज्य सरकार और पुलिस की आलोचना की। शिवसेना-यूबीटी के नेता संजय राउत ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि यदि मुख्यमंत्री खुद स्थिति पर नियंत्रण पाते तो यह हिंसा नहीं फैलती। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में बाहरी तत्वों ने आकर दंगे भड़काए और पुलिस को समय पर कार्रवाई करने का मौका नहीं मिला। राउत ने यह भी सवाल उठाया कि इस हिंसा के पीछे किसका हाथ था और क्यों औरंगजेब का नाम लेकर महाराष्ट्र में अशांति फैलाने की कोशिश की जा रही थी। उन्होंने इसे एक नया पैटर्न बताया, जिसमें हिंदू समुदाय को भड़काने के लिए विभिन्न जगहों पर उपद्रव किए जा रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या इस हिंसा के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य था, या फिर यह केवल धार्मिक उन्माद को भड़काने की साजिश थी। राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह हिंसा औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास से जुड़ी बहसों को और तूल देती है। कई लोगों का कहना है कि इस तरह की हिंसा से केवल समाज में विभाजन और तनाव बढ़ेगा, न कि कोई समाधान निकलेगा। इसके बजाय, हमें अपने इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करते हुए शांति और सहिष्णुता की दिशा में काम करना चाहिए।

नागपुर की हिंसा ने यह भी दर्शाया कि कैसे सोशल मीडिया और अफवाहों के माध्यम से किसी भी घटना को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा सकता है। प्रदर्शनकारियों के वीडियो और सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों ने स्थिति को और जटिल बना दिया। यह घटना यह भी साबित करती है कि जब लोग बिना सटीक जानकारी के अपने गुस्से को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकट करते हैं, तो इससे हिंसा और अराजकता को बढ़ावा मिलता है।

वर्तमान में स्थिति काबू में है, लेकिन इस हिंसा के कारण नागपुर और महाराष्ट्र के कई इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत कर दी गई है। पुलिस और प्रशासन इस घटना की गहन जांच कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ न हों। साथ ही, लोगों से अपील की जा रही है कि वे अफवाहों पर विश्वास न करें और शांति बनाए रखें।

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