डिंपल पर मौलाना का वार, अखिलेश की चुप्पी ने खोला वोटबैंक का सच!

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है। इस बार विवाद का केंद्र बने हैं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी पत्नी, मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव। मामला तब गरमाया जब ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने डिंपल यादव के पहनावे को लेकर एक टीवी डिबेट में आपत्तिजनक टिप्पणी की। इस टिप्पणी ने न केवल राजनीतिक गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया, बल्कि अखिलेश यादव की चुप्पी ने इस विवाद को और हवा दे दी। हमेशा बेबाकी से अपनी बात रखने वाले अखिलेश इस बार मौन हैं, और उनकी यह खामोशी विपक्ष, खासकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गई है। बीजेपी ने इसे वोटबैंक की राजनीति से जोड़ते हुए अखिलेश पर तीखा हमला बोला है। आखिर क्या है पूरा मामला, और क्यों अखिलेश की चुप्पी सियासी तूफान का कारण बन रही है?

विवाद की शुरुआत तब हुई जब 22 जुलाई 2025 को समाजवादी पार्टी के कुछ सांसद संसद भवन के पास स्थित एक मस्जिद में बैठक के लिए पहुंचे। इस बैठक में अखिलेश यादव, उनकी पत्नी डिंपल यादव, रामपुर सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, संभल सांसद शफीकुर रहमान बर्क और अन्य सपा नेता शामिल थे। इस दौरान सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें साझा कीं, जिनमें डिंपल यादव साड़ी में और अन्य सांसद मस्जिद के अंदर बैठे नजर आए। इन तस्वीरों ने तुरंत विवाद को जन्म दिया। बीजेपी ने इस बैठक को धार्मिक स्थल का राजनीतिक उपयोग करार देते हुए सपा को ‘नमाजवादी पार्टी’ का तमगा दे दिया। बीजेपी नेताओं ने इसे संविधान के खिलाफ बताया, क्योंकि भारतीय संविधान धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं देता।

लेकिन असल बवाल तब मचा जब मौलाना साजिद रशीदी ने एक टीवी डिबेट में डिंपल यादव के पहनावे पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि मस्जिद में दो महिलाएं थीं, जिनमें से एक, सपा सांसद इकरा हसन ने सिर ढका था, जबकि डिंपल यादव ने नहीं। इस टिप्पणी को मौलाना ने इस्लामी मर्यादाओं से जोड़ते हुए डिंपल के परिधान को अनुचित बताया। यह बयान इतना आपत्तिजनक था कि इसने न केवल सपा, बल्कि पूरे देश में हंगामा खड़ा कर दिया। सपा नेता प्रवेश यादव ने मौलाना के खिलाफ लखनऊ के विभूति खंड थाने में एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 79, 196, 197, 299, 352, 353 और आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन मौलाना ने अपने बयान पर कायम रहते हुए कहा कि अगर डिंपल मंदिर में भी बिना पल्लू के जाती हैं, तो वे माफी मांग लेंगे।

इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा चर्चा अखिलेश यादव की चुप्पी की हो रही है। हमेशा ट्विटर पर सक्रिय रहने वाले और हर मुद्दे पर बेबाकी से बोलने वाले अखिलेश ने इस मामले में एक शब्द भी नहीं कहा। जब उनसे मीडिया ने सवाल किया, तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा, “लोकसभा में क्या पहनकर आएं, बताओ। जो लोकसभा में पहनकर आएंगे, वही हमारी ड्रेस होगी।” यह जवाब न केवल संक्षिप्त था, बल्कि इसे टालमटोल वाला भी माना गया। बीजेपी ने इस चुप्पी को वोटबैंक की राजनीति से जोड़ते हुए अखिलेश पर तीखा हमला बोला। बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज ने कहा, “अखिलेश यादव अपनी पत्नी के सम्मान के लिए खड़े नहीं हो सकते, तो वे उत्तर प्रदेश की बेटियों की सुरक्षा कैसे करेंगे?” बीजेपी ने इसे तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण बताते हुए संसद भवन के मकर द्वार पर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें एनडीए सांसदों ने तख्तियां लहराईं, जिन पर लिखा था, “नारी सम्मान पर भारी, तुष्टिकरण की राजनीति तुम्हारी।”

लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। लखनऊ के चौराहों पर पोस्टर लगाए गए, जिनमें अखिलेश की चुप्पी को “धिक्कार है” कहकर निशाना साधा गया। योगी सरकार की मंत्री बेबीरानी मौर्य ने कहा, “महिलाओं के अपमान को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अखिलेश की चुप्पी वोटबैंक की लालच को दर्शाती है।” बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने भी अखिलेश, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि वे वोटबैंक की मजबूरियों के चलते मौन हैं। दूसरी ओर, सपा सांसद इकरा हसन ने मौलाना की टिप्पणी को शर्मनाक बताते हुए कड़ी कार्रवाई और सामाजिक बहिष्कार की मांग की।

डिंपल यादव ने इस पूरे मामले पर सधे हुए अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने बीजेपी के विरोध प्रदर्शन को “पाखंड” करार देते हुए कहा, “यदि आप लोग मणिपुर के मामले में भी इसी तरह से विरोध जताते, तो इस प्रदर्शन के मायने और ज्यादा होते। महिला सम्मान सिर्फ राजनीतिक सुविधा का मुद्दा नहीं होना चाहिए।” डिंपल की इस प्रतिक्रिया को कुछ लोग उनकी समझदारी से जोड़ रहे हैं, तो कुछ इसे मुस्लिम वोटबैंक को नाराज न करने की रणनीति मान रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की सियासत में वोटबैंक का गणित हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में मुस्लिम आबादी 19.26 फीसदी है, जो सपा का एक बड़ा वोटबैंक है। अखिलेश यादव की पार्टी का आधार यादव, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों पर टिका है। ऐसे में मौलाना साजिद रशीदी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देना सपा के लिए जोखिम भरा हो सकता है। सपा का इतिहास रहा है कि वह मुस्लिम समुदाय के समर्थन को बनाए रखने के लिए सावधानी बरतती है। यही कारण है कि अखिलेश ने इस मामले में चुप्पी साधकर विवाद को और तूल देने से बचने की कोशिश की है।

हालांकि, यह चुप्पी सपा के लिए उल्टा पड़ रही है। बीजेपी ने इसे महिला सम्मान का मुद्दा बनाकर सपा को घेर लिया है। लोजपा (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने कहा, “महिलाओं की गरिमा को सांप्रदायिकता के आधार पर निशाना बनाना शर्मनाक है।” कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने भी मौलाना पर निशाना साधा, लेकिन सपा का बचाव करते हुए बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया। दूसरी ओर, सपा समर्थकों का कहना है कि अखिलेश सामाजिक न्याय, बेरोजगारी और किसान कल्याण जैसे बड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहते हैं, न कि इस तरह के विवादों में उलझना।

यह विवाद केवल डिंपल यादव या अखिलेश की चुप्पी तक सीमित नहीं है। यह उत्तर प्रदेश की सियासत में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों की संवेदनशीलता को दर्शाता है। बीजेपी जहां इस मुद्दे को तुष्टिकरण के खिलाफ अपनी लड़ाई का हिस्सा बना रही है, वहीं सपा इसे एक सोची-समझी साजिश के रूप में देख रही है। मौलाना साजिद रशीदी की टिप्पणी ने न केवल सपा को असहज स्थिति में डाल दिया है, बल्कि अखिलेश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर भी सवाल उठाए हैं।

अखिलेश यादव की चुप्पी को लेकर तरह-तरह की अटकलें लग रही हैं। कुछ का मानना है कि वे इस मुद्दे को ठंडा करने की रणनीति अपना रहे हैं, ताकि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले उनके वोटबैंक पर कोई असर न पड़े। लेकिन यह चुप्पी उनके विरोधियों को मौका दे रही है कि वे सपा को महिला सम्मान और तुष्टिकरण के मुद्दे पर घेर सकें। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई भी मुद्दा छोटा नहीं होता, और एक गलत बयान या चुप्पी सियासी समीकरण बदल सकती है।

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