कल से यानी 27 अगस्त से अमेरिका द्वारा भारत पर थोपे गए 50 प्रतिशत टैरिफ का असर शुरू हो जाएगा। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा लिया गया है, जो मुख्य रूप से भारत के रूस से तेल आयात को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। इस टैरिफ से भारत के निर्यात पर भारी असर पड़ने की आशंका है, खासकर उन क्षेत्रों में जो अमेरिका पर निर्भर हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। बता दें टैरिफ का मुद्दा रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ा है। अमेरिका का मानना है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे बाजार में बेचकर मुनाफा कमा रहा है, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। ट्रंप ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता करार दिया है। 6 अगस्त को जारी एक्जीक्यूटिव ऑर्डर 14329 के तहत, अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगाने का फैसला किया, जो पहले से मौजूद 25 फीसदी टैरिफ के ऊपर है, कुल मिलाकर 50 फीसदी। यह 27 अगस्त को लागू होगा।
भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां से सालाना लगभग 87 अरब डॉलर का माल जाता है। इस टैरिफ से लगभग 55 फीसदी निर्यात प्रभावित होगा। प्रभावित क्षेत्रों में कपड़ा, परिधान, जूते, सामान, झींगा और अन्य समुद्री उत्पाद, रत्न और आभूषण, चमड़ा शामिल हैं। ये श्रम-गहन क्षेत्र हैं, जहां लाखों नौकरियां दांव पर हैं। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इससे भारत की जीडीपी वृद्धि में 0.7 से 1 प्रतिशत की कमी आ सकती है, और विकास दर 6 प्रतिशत से नीचे जा सकती है। हालांकि, कुछ उत्पाद छूट में हैं, जैसे लोहा, स्टील, एल्यूमिनियम, यात्री वाहन, ट्रक, कॉपर उत्पाद, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स (जैसे भारत में असेंबल आईफोन)। फिर भी, निर्यातकों को आदेश रद्द होने और प्रतिस्पर्धियों (जैसे वियतनाम, बांग्लादेश) से हारने की शिकायतें आ रही हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनौती को बाहरी दबाव करार दिया है और कहा है कि भारत किसानों और छोटे व्यवसायियों के हितों से समझौता नहीं करेगा। अहमदाबाद में एक रैली में उन्होंने कहा, “चाहे कितना भी दबाव आए, हम अपनी ताकत बढ़ाते रहेंगे।” यह आत्मनिर्भर भारत अभियान की भावना से जुड़ा है, जो आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर देता है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी फैसले को “अनुचित और अन्यायपूर्ण” बताया है। उन्होंने मॉस्को यात्रा के दौरान कहा कि अगर अमेरिका को भारतीय तेल या रिफाइंड उत्पादों से समस्या है, तो वह उन्हें खरीदना बंद कर दे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यूरोप और अमेरिका खुद भारत से रिफाइंड उत्पाद खरीदते हैं, और 2022 में अमेरिका ने भारत के रूसी तेल आयात को मौन स्वीकृति दी थी, क्योंकि इससे वैश्विक तेल बाजार स्थिर हुआ। जयशंकर ने चीन और यूरोपीय देशों पर समान तर्क न लागू करने पर सवाल उठाया।सरकार की रणनीति बहुआयामी है। सबसे पहले, निर्यातकों को सहायता—2.8 अरब डॉलर का पैकेज तैयार है, जिसमें बैंक ऋणों पर सब्सिडी, लिक्विडिटी सहायता और बाजार विविधीकरण के लिए फंड शामिल हैं। इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष पंकज चड्डा ने कहा कि सरकार विविधीकरण का समर्थन करेगी, जैसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशियाई बाजारों में निर्यात बढ़ाना।
दूसरा, घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना। मोदी सरकार रोजमर्रा की वस्तुओं पर टैक्स कटौती का प्रस्ताव कर रही है, ताकि उपभोग बढ़े और मंदी से बचा जा सके। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम को प्रभावित क्षेत्रों में तेज किया जाएगा, लेकिन निवेशकों की सतर्कता के कारण उच्च-जोखिम क्षेत्रों (जैसे बैटरी और सोलर पीवी) में कम क्लियरेंस मिल रहे हैं। सरकार कम-जोखिम वाले क्षेत्रों जैसे खाद्य उत्पाद और ऑटोमोबाइल पर फोकस कर रही है।
तीसरा, कूटनीतिक प्रयास। भारत-अमेरिका व्यापार सौदे पर बातचीत जारी है, हालांकि कृषि और डेयरी मुद्दों पर अटकी हुई है। मोदी सरकार उम्मीद कर रही है कि रूस-यूक्रेन शांति वार्ता से टैरिफ हट सकता है। ट्रंप के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा कि यह “आर्थिक दबाव” यूक्रेन में संघर्ष विराम के लिए है। भारत रूस के साथ संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका से बात कर रहा है। हाल में मोदी और पुतिन की बातचीत में ऊर्जा स्रोत जारी रखने पर सहमति हुई।
आर्थिक प्रभाव और चुनौतियां
इस टैरिफ से बाजार पहले ही प्रभावित हो चुके हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले 0.17% गिरा, और सेंसेक्स-निफ्टी में गिरावट आई। निर्यात में 20-30% की गिरावट की आशंका है, खासकर सितंबर से। एसएंडपी का अनुमान है कि जीडीपी के 1.2% के बराबर निर्यात प्रभावित होगा, लेकिन यह “एक बार का झटका” है।चुनौतियां बड़ी हैं नौकरी छूटना, आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना, और निवेश घटना। लेकिन मोदी सरकार की आत्मनिर्भर नीति से भारत पहले से तैयार है। 2020 से पीएलआई स्कीम ने 1.5 लाख करोड़ का निवेश आकर्षित किया है। अब इसे और मजबूत किया जाएगा।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शांति वार्ता सफल हुई, तो टैरिफ हट सकता है। भारत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर, हाइड्रोजन) पर फोकस कर रहा है, ताकि रूस पर निर्भरता कम हो। सरकार एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) को तेज कर रही है, जैसे यूके, ईयू और कनाडा के साथ।मोदी सरकार की रणनीति स्पष्ट है दृढ़ता से राष्ट्रीय हितों की रक्षा, आर्थिक सहायता से प्रभावितों की मदद, और कूटनीति से समाधान। यह चुनौती भारत को और मजबूत बना सकती है, जैसा कि मोदी ने कहा, “हमारी ताकत बढ़ाते रहेंगे।”