लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) एक नया इतिहास लिखने की तैयारी में है। चौधरी अजित सिंह के दौर से ही पार्टी पश्चिमी यूपी की जाट-केंद्रित छवि को तोड़कर पूरे प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश में जुटी है। अब तक सफलता आंशिक ही मिली, लेकिन अब हवा का रुख बदल रहा है। पार्टी में जल्द ही बड़े संगठनात्मक फेरबदल होने वाले हैं, जो न केवल आरएलडी को नई ऊर्जा देंगे, बल्कि यूपी की सियासत में उसे एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभार सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, आरएलडी जल्द ही नया राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के लिए नया प्रदेश अध्यक्ष चुनेगी। जयंत चौधरी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना लगभग तय है, लेकिन यूपी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर सभी की नजरें टिकी हैं। यह बदलाव यूपी की सियासत को नया मोड़ दे सकता है।29 अगस्त को लखनऊ में होने वाली एक अहम बैठक में इस बदलाव की रूपरेखा तैयार होगी। राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) त्रिलोक त्यागी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक का फोकस अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों पर होगा। पार्टी ने सभी जिला इकाइयों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, ताकि कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन का आकलन हो सके और संगठन की कमजोर कड़ियों को मजबूत किया जाए। राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा ने कहा, “एनडीए के साथ मिलकर हम यूपी में अपनी संगठनात्मक ताकत को और मजबूत करना चाहते हैं।” यह बयान आरएलडी की नई रणनीति को साफ दर्शाता है- केवल पश्चिमी यूपी तक सीमित न रहकर पूरे प्रदेश में पैठ बनाना।
पंचायत चुनाव यूपी की सियासत में जमीनी ताकत का पैमाना हैं। अगर आरएलडी इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनावों में उसकी सौदेबाजी की ताकत को बढ़ाएगा। पार्टी का जिला स्तर पर जानकारी जुटाना इस बात का संकेत है कि वह उन नेताओं को मौका देना चाहती है, जो स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली हैं और जमीनी कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सकते हैं। यह रणनीति न केवल संगठन को मजबूत करेगी, बल्कि गैर-जाट समुदायों तक पहुंचने में भी मददगार होगी।आरएलडी की जड़ें मुख्य रूप से जाट समुदाय और किसानों में गहरी रही हैं। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय के नेतृत्व में पश्चिमी यूपी में पार्टी ने अपनी पकड़ को और मजबूत किया है। राय का सियासी सफर भी कम दिलचस्प नहीं है। देवरिया के रहने वाले राय पहले बीजेपी में थे और 1997 से 2000 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। वे यूपी विधान परिषद के सदस्य भी चुने गए। 1993 में फाजिलनगर से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन 1500 वोटों से हार गए। 2021 में आरएलडी में शामिल होने के बाद उन्होंने संगठन को स्थिरता दी।लेकिन जाट समुदाय से बाहर विस्तार करना आरएलडी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मध्य और पूर्वी यूपी में पार्टी की मौजूदगी अभी कमजोर है। जानकारों का मानना है कि नया चेहरा पार्टी में नई ऊर्जा ला सकता है। खासकर ओबीसी और दलित वोटरों तक पहुंचने के लिए नए नेतृत्व की जरूरत है। अगर आरएलडी इस दिशा में कामयाब होती है, तो वह न केवल अपनी सियासी ताकत बढ़ाएगी, बल्कि बीजेपी के सामाजिक समीकरण को भी मजबूत करेगी।
बीजेपी की नजर आरएलडी के इन बदलावों पर टिकी है। पश्चिमी यूपी में जाट वोट बैंक बीजेपी के लिए बेहद अहम है, और आरएलडी इस समीकरण को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है। जयंत चौधरी की अगुवाई में आरएलडी ने एनडीए के साथ केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर गठबंधन को मजबूत किया है। जयंत केंद्र में मंत्री हैं, जबकि अनिल कुमार योगी सरकार में मंत्री हैं। यह गठबंधन बीजेपी को पश्चिमी यूपी में जाट वोटों को साधने में मदद करता है, जो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उसकी जीत का बड़ा कारण रहा।हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा-आरएलडी गठबंधन ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। जयंत के एनडीए में शामिल होने के बाद समीकरण फिर से बीजेपी के पक्ष में झुके हैं। बीजेपी चाहती है कि आरएलडी न केवल जाट वोटों को एकजुट करे, बल्कि मध्य और पूर्वी यूपी में भी अपनी पहुंच बढ़ाए। इसके लिए नए चेहरों को जिम्मेदारी देना जरूरी है। रामाशीष राय का बीजेपी से पुराना नाता उनके अनुभव को गठबंधन के लिए फायदेमंद बनाता है, लेकिन अब नया नेतृत्व चुनकर आरएलडी एक नई पहचान बनाना चाहती है।आरएलडी के सामने कई चुनौतियां भी हैं। वक्फ बिल पर पार्टी के समर्थन ने पश्चिमी यूपी में उसके मुस्लिम आधार को प्रभावित किया है। एक प्रदेश महासचिव के इस्तीफे और कुछ नेताओं में असंतोष ने पार्टी की एकता पर सवाल उठाए। जयंत ने इसे संभालते हुए कहा, “हम किसानों, युवाओं और वंचितों के लिए लड़ते रहेंगे।” लेकिन मुस्लिम वोटरों का एक हिस्सा सपा और कांग्रेस की ओर झुक सकता है, जो आरएलडी के लिए चिंता का विषय है।
2025 की शुरुआत से जयंत ने संगठन को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। अप्रैल में उन्होंने युवा नेताओं को पार्टी में शामिल किया और 2027 के लिए रणनीति बनाई। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान जैसे राज्यों से प्रभावशाली नेताओं ने आरएलडी का दामन थामा। जयंत ने 14 अप्रैल से राष्ट्रीय सदस्यता अभियान शुरू करने का ऐलान किया, जो चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे ले जाएगा। राजस्थान में नई कार्यकारिणी की घोषणा और हरियाणा-पंजाब में विस्तार की कोशिशें पार्टी की नई महत्वाकांक्षा को दर्शाती हैं।यूपी में सपा और बसपा से कई कार्यकर्ता आरएलडी में शामिल हो रहे हैं। फर्रुखाबाद में कार्यकर्ताओं ने जयंत को सामाजिक न्याय की आवाज बताया। अयोध्या में रालोद नेता विश्वेष नाथ मिश्र ने जयंत से मुलाकात कर स्थानीय चुनावों पर चर्चा की। पिछले साल कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ी, लेकिन जयंत ने संगठन को संभाला। बिजनौर में उनके कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जनसंपर्क तेज है। दिसंबर 2024 में गुर्जर कार्ड खेलते हुए रामपाल धामा को पंचायती राज प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। आरएलडी की यह रणनीति यूपी की सियासत को नया रंग दे सकती है। अगर पंचायत चुनावों में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो 2027 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ उसका गठबंधन और मजबूत होगा। जयंत चौधरी की अगुवाई में आरएलडी न केवल किसानों की आवाज बनेगी, बल्कि युवाओं और वंचितों को भी साथ जोड़ेगी। संगठनात्मक बदलाव और नई ऊर्जा के साथ पार्टी एक बार फिर सुर्खियों में है। यूपी की सियासत में आरएलडी का यह नया अवतार देखने लायक होगा।