भारत के हालिया ऑपरेशन “सिंदूर” ने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया है कि भविष्य के युद्ध किस तरह के होंगे। इस ऑपरेशन में जिस तरह से तकनीक और रफ्तार का इस्तेमाल हुआ, उसने पारंपरिक युद्ध रणनीतियों को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका के प्रसिद्ध रक्षा विश्लेषक और वॉर इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर जॉन स्पेंसर ने कहा कि यह केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी एक चेतावनी है — एक ऐसा झटका जो उसे अपनी नींद से जगाने के लिए काफी है। उन्होंने लिखा कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए यह दिखा दिया है कि अब युद्ध तेज़, तकनीकी रूप से उन्नत और बेहद घातक होंगे। अमेरिका को अब अपनी धीमी और अत्यधिक महंगी रक्षा प्रणाली पर गंभीरता से दोबारा विचार करना होगा।
स्पेंसर का मानना है कि अमेरिका की मौजूदा सैन्य तैयारियां कमजोर होती जा रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर चीन के साथ अचानक युद्ध की स्थिति बनती है, तो अमेरिका उसकी ताकत के सामने टिक नहीं पाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अमेरिका हर साल सिर्फ 24 से 48 PAC-3 मिसाइलें बना सकता है। यूक्रेन को दी गई स्टिंगर और जैवलिन मिसाइलों की भरपाई करने में अमेरिका को लगभग चार साल लग सकते हैं। वहीं, 155 मिमी तोपों के गोले भी लगभग खत्म हो चुके हैं।
उन्होंने अमेरिकी हथियारों की लागत और उत्पादन क्षमता पर सवाल उठाए। एक टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब 2 मिलियन डॉलर है, जबकि HIMARS लॉन्चर की कीमत 5 मिलियन डॉलर से भी ज़्यादा है। इसके मुकाबले, ईरान द्वारा बनाए गए ड्रोन मात्र 40,000 डॉलर में उपलब्ध हैं और कई बार ज़्यादा असरदार साबित हो रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने भी अमेरिका की ड्रोन नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि अमेरिका करोड़ों डॉलर खर्च करता है, जबकि विरोधी देश कुछ हज़ार डॉलर में ही बेहद घातक ड्रोन बना लेते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर में ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध के स्वरूप में बड़ा बदलाव आ चुका है। अब पारंपरिक हथियारों की बजाय हल्के, सस्ते और तकनीकी रूप से उन्नत ड्रोन युद्ध में अहम भूमिका निभा रहे हैं। जॉन स्पेंसर के शब्दों में, “ड्रोन अब नए दौर के तोप के गोले बन चुके हैं। अगर युद्ध जीतना है, तो हमें ऐसे ड्रोन चाहिए जो निगरानी कर सकें, हमला कर सकें और तेज़ी से उड़ान भर सकें — और वो भी हज़ारों नहीं, बल्कि लाखों की संख्या में।”