बार-बार बेनकाब होती हिंडनबर्ग की भारत विरोधी साजिश

संजय सक्सेना,वरिष्ठ पत्रकार

भारत की अर्थव्यवस्था और इसकी प्रमुख संस्थाओं को बदनाम करने की विदेशी साजिश एक बार फिर बेनकाब हो गई है। अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग फर्म ’हिंडनबर्ग रिसर्च’, जो स्वयं को वित्तीय विश्लेषण कंपनी बताती है, दरअसल भारत के खिलाफ एक संगठित साजिश का चेहरा बन चुकी है। मोदी सरकार, गौतम अडानी और यहां तक कि भारतीय नियामक संस्था ’सेबी’ पर हमले कर यह कंपनी न सिर्फ झूठ फैलाती रही है, बल्कि भारत की आर्थिक छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कमजोर करने की कोशिश भी कर रही है।

हिंडनबर्ग का सबसे बड़ा प्रपंच जनवरी 2023 में सामने आया जब इसने अडानी समूह के खिलाफ एक विस्फोटक रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में अडानी समूह पर वर्षों से स्टॉक हेराफेरी और अकाउंटिंग गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया, जिसके चलते समूह की कंपनियों के शेयर बुरी तरह गिर गए और निवेशकों को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस रिपोर्ट ने संसद से लेकर शेयर बाजार तक तूफान खड़ा कर दिया। मोदी सरकार पर उंगलियां उठीं क्योंकि अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माना जाता है। विपक्षी दलों को भी हमला करने का मौका मिल गया।

लेकिन समय बीतने के साथ यह स्पष्ट होता गया कि हिंडनबर्ग का मकसद सिर्फ तथाकथित सच्चाई उजागर करना नहीं, बल्कि भारतीय कॉर्पाेरेट ढांचे और सरकार की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करना था। रिपोर्ट जारी करने से पहले अडानी समूह के शेयरों को शॉर्ट कर मुनाफा कमाने की मंशा ने हिंडनबर्ग के असली एजेंडे को उजागर कर दिया। यानी पहले झूठ फैलाओ, फिर मुनाफा कमाओ कृ यह खेल था भारत की साख से!

सरकार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच समिति गठित की। ’सेबी’ को अडानी समूह की जांच सौंपी गई। अडानी ने भी पारदर्शिता दिखाते हुए कई कर्ज लौटाए और निवेशकों का भरोसा जीतने की कोशिश की। बाद में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल गई।

इसके बाद हिंडनबर्ग ने अगला निशाना बनाया भारत की एक फिनटेक कंपनी और ’सेबी’ की चेयरपर्सन ’’माधबी पुरी बुच’’ को। अगस्त 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने दावा किया कि बुच और उनके पति धवल बुच की विदेशी फंड में संदिग्ध हिस्सेदारी है, जिसे कथित रूप से अडानी समूह से जुड़े फंड के गबन में इस्तेमाल किया गया। यह आरोप भी उतना ही झूठा निकला जितना पहले का दावा।

इस मामले में ’तृणमूल कांग्रेस’ की सांसद महुआ मोइत्रा समेत कुछ नेताओं ने लोकपाल में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन जांच के बाद लोकपाल की छह सदस्यीय पीठ, जिसकी अध्यक्षता ’न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर’ कर रहे थे, ने 28 मई 2025 को स्पष्ट कहा कि आरोप केवल अनुमान और संदेह पर आधारित हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के अलावा कोई स्वतंत्र या प्रमाणिक साक्ष्य नहीं दिया गया। इस आधार पर ’माधबी बुच’ को सभी आरोपों से पूर्ण क्लीन चिट दी गई।

बुच ने 2 मार्च 2022 को सेबी की चेयरपर्सन के रूप में कार्यभार संभाला और 28 फरवरी 2025 को सेवानिवृत्त हुईं। कार्यकाल के अंतिम समय में उन पर लगाए गए झूठे आरोप न केवल उनकी साख पर प्रहार थे, बल्कि यह देश की सबसे महत्वपूर्ण नियामक संस्था ’सेबी’ को भी कमजोर करने का प्रयास था। लेकिन अब जब लोकपाल ने सच्चाई सामने रख दी है, यह स्पष्ट है कि यह पूरा प्रकरण एक सुनियोजित विदेशी साजिश थी।
कुल मिलाकर हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता पर अब गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं। रिपोर्टें झूठी, मकसद मुनाफाखोरी और निशाना भारत को निशाना बनाना यह पैटर्न अब छुपा नहीं है। भारत के निवेशकों को सतर्क रहना होगा कि कहीं विदेशी एजेंडा, वित्तीय विश्लेषण के नाम पर हमारे बाजार, संस्थानों और नेताओं को नुकसान न पहुंचाए। अब वक्त है कि ऐसी कंपनियों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जवाबी रणनीति तैयार की जाए, ताकि भारत की आर्थिक संप्रभुता से खिलवाड़ न हो सके।

मुख संस्थाओं को बदनाम करने की विदेशी साजिश एक बार फिर बेनकाब हो गई है। अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग फर्म ’हिंडनबर्ग रिसर्च’, जो स्वयं को वित्तीय विश्लेषण कंपनी बताती है, दरअसल भारत के खिलाफ एक संगठित साजिश का चेहरा बन चुकी है। मोदी सरकार, गौतम अडानी और यहां तक कि भारतीय नियामक संस्था ’सेबी’ पर हमले कर यह कंपनी न सिर्फ झूठ फैलाती रही है, बल्कि भारत की आर्थिक छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कमजोर करने की कोशिश भी कर रही है।

हिंडनबर्ग का सबसे बड़ा प्रपंच जनवरी 2023 में सामने आया जब इसने अडानी समूह के खिलाफ एक विस्फोटक रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में अडानी समूह पर वर्षों से स्टॉक हेराफेरी और अकाउंटिंग गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया, जिसके चलते समूह की कंपनियों के शेयर बुरी तरह गिर गए और निवेशकों को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस रिपोर्ट ने संसद से लेकर शेयर बाजार तक तूफान खड़ा कर दिया। मोदी सरकार पर उंगलियां उठीं क्योंकि अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माना जाता है। विपक्षी दलों को भी हमला करने का मौका मिल गया।

लेकिन समय बीतने के साथ यह स्पष्ट होता गया कि हिंडनबर्ग का मकसद सिर्फ तथाकथित सच्चाई उजागर करना नहीं, बल्कि भारतीय कॉर्पाेरेट ढांचे और सरकार की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करना था। रिपोर्ट जारी करने से पहले अडानी समूह के शेयरों को शॉर्ट कर मुनाफा कमाने की मंशा ने हिंडनबर्ग के असली एजेंडे को उजागर कर दिया। यानी पहले झूठ फैलाओ, फिर मुनाफा कमाओ कृ यह खेल था भारत की साख से!

सरकार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच समिति गठित की। ’सेबी’ को अडानी समूह की जांच सौंपी गई। अडानी ने भी पारदर्शिता दिखाते हुए कई कर्ज लौटाए और निवेशकों का भरोसा जीतने की कोशिश की। बाद में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल गई।

इसके बाद हिंडनबर्ग ने अगला निशाना बनाया भारत की एक फिनटेक कंपनी और ’सेबी’ की चेयरपर्सन ’’माधबी पुरी बुच’’ को। अगस्त 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने दावा किया कि बुच और उनके पति धवल बुच की विदेशी फंड में संदिग्ध हिस्सेदारी है, जिसे कथित रूप से अडानी समूह से जुड़े फंड के गबन में इस्तेमाल किया गया। यह आरोप भी उतना ही झूठा निकला जितना पहले का दावा।

इस मामले में ’तृणमूल कांग्रेस’ की सांसद महुआ मोइत्रा समेत कुछ नेताओं ने लोकपाल में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन जांच के बाद लोकपाल की छह सदस्यीय पीठ, जिसकी अध्यक्षता ’न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर’ कर रहे थे, ने 28 मई 2025 को स्पष्ट कहा कि आरोप केवल अनुमान और संदेह पर आधारित हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के अलावा कोई स्वतंत्र या प्रमाणिक साक्ष्य नहीं दिया गया। इस आधार पर ’माधबी बुच’ को सभी आरोपों से पूर्ण क्लीन चिट दी गई।

बुच ने 2 मार्च 2022 को सेबी की चेयरपर्सन के रूप में कार्यभार संभाला और 28 फरवरी 2025 को सेवानिवृत्त हुईं। कार्यकाल के अंतिम समय में उन पर लगाए गए झूठे आरोप न केवल उनकी साख पर प्रहार थे, बल्कि यह देश की सबसे महत्वपूर्ण नियामक संस्था ’सेबी’ को भी कमजोर करने का प्रयास था। लेकिन अब जब लोकपाल ने सच्चाई सामने रख दी है, यह स्पष्ट है कि यह पूरा प्रकरण एक सुनियोजित विदेशी साजिश थी।
कुल मिलाकर हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता पर अब गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं। रिपोर्टें झूठी, मकसद मुनाफाखोरी और निशाना भारत को निशाना बनाना यह पैटर्न अब छुपा नहीं है। भारत के निवेशकों को सतर्क रहना होगा कि कहीं विदेशी एजेंडा, वित्तीय विश्लेषण के नाम पर हमारे बाजार, संस्थानों और नेताओं को नुकसान न पहुंचाए। अब वक्त है कि ऐसी कंपनियों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जवाबी रणनीति तैयार की जाए, ताकि भारत की आर्थिक संप्रभुता से खिलवाड़ न हो सके।

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