ग्लोबल मंच से मोदी के डिनर टेबल तक विपक्ष की विमेन पावर, भारत की एकजुटता की मिसाल बनीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ एक नई और सशक्त रणनीति के तहत न केवल सैन्य कार्रवाई की बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी ऐसा संदेश देने की कोशिश की जो अब तक भारतीय राजनीति में शायद ही कभी देखा गया हो। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक का करारा जवाब देने के बाद पीएम मोदी ने एक और बड़ा कदम उठाया और वह था विपक्षी दलों को साथ लेकर एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल बनाना, जिसे दुनिया के विभिन्न देशों में भेजा गया। इस प्रतिनिधिमंडल का उद्देश्य था पाकिस्तान के आतंकवादी चेहरे को वैश्विक मंचों पर बेनकाब करना और भारत के रुख को दुनिया के सामने मजबूती से रखना। लेकिन इस पूरी कवायद में जो बात सबसे ज्यादा चर्चा में रही, वह थी विपक्ष की तीन प्रमुख महिला सांसदों की भूमिका सुप्रिया सुले, प्रियंका चतुर्वेदी और एमके कनिमोझी। तीनों सांसदों ने मोदी सरकार के कूटनीतिक मिशन को सफल बनाने में जिस तत्परता और जिम्मेदारी के साथ भूमिका निभाई, उसने न सिर्फ विपक्ष की पारंपरिक भूमिका को नए तरीके से परिभाषित किया, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक ताकत को भी वैश्विक मंच पर स्थापित किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने इन तीनों नेताओं को सिर्फ प्रतिनिधिमंडल में शामिल ही नहीं किया, बल्कि उन्हें नेतृत्व करने की जिम्मेदारी भी दी। सुप्रिया सुले को जहां अफ्रीका और मध्य-पूर्व के चार देशों की यात्रा पर भेजा गया, वहीं कनिमोझी ने रूस और यूरोप के पांच देशों की यात्रा की। प्रियंका चतुर्वेदी को यूरोपीय यूनियन के मुख्य देशों में भेजा गया जहां उन्होंने फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, बेल्जियम और डेनमार्क जैसे प्रभावशाली देशों से संवाद किया। दिलचस्प बात यह रही कि ये तीनों सांसद वो हैं जो संसद से लेकर सोशल मीडिया तक मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर रखती हैं और अक्सर बीजेपी की आलोचना करती नजर आती हैं। लेकिन जब राष्ट्रहित की बात आई तो इन नेताओं ने अपनी राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर देश की बात की और भारत के स्टैंड को दुनिया के सामने मजबूती से रखा। इसी एकजुटता और राजनीतिक परिपक्वता की वजह से भारत की कूटनीतिक स्थिति और अधिक मज़बूत हुई।

इस पूरे मिशन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इन सभी प्रतिनिधियों को अपने आवास पर आमंत्रित किया और उनके सम्मान में रात्रिभोज आयोजित किया। यह सिर्फ एक डिनर नहीं था, बल्कि इसे देश की ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के तौर पर देखा गया, जहां प्रधानमंत्री ने राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर एकजुटता और सहयोग का संदेश दिया। इस डिनर में पीएम मोदी ने खास तौर पर सुप्रिया सुले, प्रियंका चतुर्वेदी और कनिमोझी से बातचीत की, उनसे उनके अनुभव जाने और उनके प्रयासों की सराहना की। सोशल मीडिया पर साझा की गई तस्वीरों में साफ देखा गया कि पीएम मोदी कैसे व्यक्तिगत रूप से इन तीनों महिला सांसदों से मिल रहे हैं, उनसे बात कर रहे हैं और उनका सम्मान कर रहे हैं। यह दृश्य अपने आप में भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं की एक खूबसूरत झलक थी, जहां राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राष्ट्रहित में एकजुटता प्राथमिकता बन जाती है।

सुप्रिया सुले ने इस पूरे मिशन को अपने लिए सौभाग्य की बात बताया और एक्स (ट्विटर) पर लिखा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आभारी हैं जिन्होंने उन्हें इस अहम जिम्मेदारी के लिए चुना। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अस्थिरता का स्रोत है और भारत की तरफ से उसका आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख बिल्कुल जायज है। कनिमोझी ने भी अपने विदेश दौरे के अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्होंने वैश्विक नेताओं से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयासों की जानकारी दी और उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि आतंकवाद से निपटना किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब किसी भी स्थिति में अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा और पाकिस्तान जैसे देशों की आतंकवाद समर्थक नीतियों को बेनकाब करता रहेगा। प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने यूरोपीय दौरे की जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों, सांसदों, स्पीकरों और विपक्षी नेताओं से मुलाकात की और पाकिस्तान की सच्चाई को पूरी मजबूती से उनके सामने रखा। उन्होंने बताया कि हर मीटिंग में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है और पाकिस्तान इसे एक राज्यनीति के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि IMF जैसे संस्थानों से कर्ज लेकर पाकिस्तान अपने नागरिकों की भलाई पर खर्च करने की बजाय आतंकियों को पनाह और पैसा दे रहा है। प्रियंका ने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने यह साफ कर दिया है कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा और अगर पाकिस्तान बाज नहीं आया तो भारत पाकिस्तान में घुसकर भी आतंकियों का सफाया करेगा।

इन तीनों महिला नेताओं की टिप्पणियों और उनके दृढ़ रुख ने यह दिखा दिया कि जब बात देश की सुरक्षा की होती है तो राजनीतिक मतभेद पीछे छूट जाते हैं और सब एकसाथ खड़े होते हैं। यही भारत की लोकतांत्रिक ताकत है जो उसे दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक बनाती है। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताकत को दुनिया के सामने साबित किया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि भारत की राजनीतिक प्रणाली अब ज्यादा परिपक्व हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरीके से अपने कड़े आलोचकों को भी इस मिशन में शामिल किया, उससे यह संकेत भी गया कि वह सिर्फ सत्ता के नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के नेता हैं।

राजनीतिक विश्लेषक इस पहल को एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। उनका कहना है कि एक ओर जहां इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर आंतरिक राजनीति में भी एक सकारात्मक संदेश गया है कि विपक्ष को भी राष्ट्रहित में सम्मानजनक भूमिका दी जा सकती है। यह वह उदाहरण है जिसकी आज के समय में राजनीति को सबसे ज्यादा जरूरत है जहां सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर देश के लिए सोचें, लड़ें और आगे बढ़ें।यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑपरेशन सिंदूर और डिनर डिप्लोमेसी ने मिलकर एक ऐसा नया अध्याय रच दिया है जिसमें राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद, कूटनीति और लोकतंत्र की असल परिभाषा को सामने रखा गया। यह वो क्षण था जब देश की संसद से लेकर विदेश तक भारत एक आवाज़ में बोला और पूरी दुनिया ने उस आवाज़ को सुना। प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल आने वाले वर्षों में भारत की राजनीति और विदेश नीति दोनों के लिए एक आदर्श बन सकती है, बशर्ते इसे स्थायी दिशा दी जाए। पाकिस्तान को जवाब देना जितना ज़रूरी था, उतना ही ज़रूरी यह भी था कि भारत की आवाज़ हर मंच पर एक जैसी सुनाई दे और यही इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही।

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