गाजा में बगावत हजारों फिलिस्तीनियों ने कहा न युद्ध चाहिए, न हमास

गाजा में बगावत हजारों फिलिस्तीनियों ने कहा न युद्ध चाहिए, न हमास

अजय कुमार

गाजा पट्टी में हाल ही में एक ऐतिहासिक घटना घटी जब हजारों फिलिस्तीनी नागरिकों ने हमास के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध केवल किसी संगठन के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी आवाज़ थी जो दशकों के संघर्ष, तबाही और हताशा के बीच शांति की पुकार थी। जब लोग सड़कों पर उतरे तो उनके हाथों में सफेद झंडे थे, जो उनके युद्ध से थक चुके मन की गवाही दे रहे थे। “हम जीना चाहते हैं”, “हमास बाहर जाओ” जैसे नारों से गूंजती गाजा की गलियां इस बात का प्रमाण थीं कि नागरिक अब और खून-खराबा नहीं चाहते। वे किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित नहीं थे, न किसी साजिश का हिस्सा थे, बल्कि वे सिर्फ जीवन की सामान्यता वापस चाहते थे।

गाजा में हमास के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन पहली बार देखा गया। 2007 से हमास के शासन में असहमति जताने वालों को अक्सर प्रताड़ना झेलनी पड़ी है। लेकिन जब स्थिति असहनीय हो जाए, जब जीवन संघर्ष का पर्याय बन जाए, तब जनता खुद ही सत्ता के खिलाफ उठ खड़ी होती है। गाजा के नागरिक अब इस शासन से तंग आ चुके हैं। युद्ध ने उन्हें सिर्फ तबाही दी है, उनका सब कुछ छीन लिया है। घर ढह गए हैं, सड़कें खंडहर बन चुकी हैं, अस्पतालों में बेड नहीं, दवाइयाँ नहीं, पानी और बिजली की आपूर्ति ठप। बच्चों के पास स्कूल नहीं, व्यापार खत्म हो चुके हैं, रोज़गार का नामोनिशान नहीं। ऐसे में जब नागरिकों ने हमास के खिलाफ प्रदर्शन किया, तो यह उनकी हताशा की पराकाष्ठा थी।

इस विरोध की जड़ें उस युद्ध में हैं, जो 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इज़राइल पर हमले के बाद शुरू हुआ था। उस हमले में 1200 से अधिक इज़राइली नागरिक मारे गए थे और सैकड़ों बंधक बना लिए गए थे। इस आक्रमण के बाद इज़राइल ने गाजा पर जबरदस्त हमले किए, जिनमें अब तक 50,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। गाजा के अस्पताल खचाखच भरे हैं, घायलों के इलाज के लिए डॉक्टर और संसाधन नहीं बचे। लोग मलबे में दबे अपने परिवारजनों को ढूंढ रहे हैं, लेकिन हर तरफ सिर्फ मौत और विनाश है।

इस युद्ध ने गाजा के लोगों को दो तरफा संकट में डाल दिया है। एक तरफ इज़राइली सेना के हमले हैं, दूसरी तरफ हमास का दमनकारी शासन। गाजा के नागरिकों का सवाल यह है कि उनके लिए भविष्य क्या है? क्या वे सिर्फ युद्ध के मोहरे बनकर रह जाएंगे? क्या उनकी ज़िंदगी का कोई मूल्य नहीं? हमास जिस लड़ाई को उनकी आज़ादी की जंग बताता है, उसमें वे ही सबसे ज्यादा मर रहे हैं। उन्हें यह समझ आने लगा है कि इस संघर्ष में उनके लिए कुछ भी नहीं बचा है। इसलिए अब वे इस कहर को रोकना चाहते हैं।

यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ नारों तक सीमित नहीं रहा। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो और तस्वीरें तेजी से वायरल हुईं, जिससे पूरी दुनिया का ध्यान इस पर गया। लोगों ने खुलकर कहा कि हमास ने गाजा को नरक बना दिया है। कुछ नागरिकों ने कहा कि वे सिर्फ यह चाहते हैं कि उनके बच्चे बिना डर के स्कूल जा सकें, वे रात को अपने घरों में सुरक्षित सो सकें, वे बिना किसी धमाके के अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी जी सकें। यह बहुत छोटी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मांग थी शांति।

हमास के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। अब तक वह खुद को गाजा के एकमात्र रक्षक के रूप में प्रस्तुत करता आया है, लेकिन जब उसी की जनता उसके खिलाफ खड़ी हो जाए, तो सवाल उठता है कि क्या उसका शासन अब भी वैध रह सकता है? हमास ने इस प्रदर्शन को इज़राइल की साजिश बताया, लेकिन यह तर्क बेबुनियाद लगता है। यह प्रदर्शन किसी बाहरी शक्ति का खेल नहीं बल्कि जनता की असली भावनाओं का प्रतिबिंब था।

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कर दिया है कि इस युद्ध का उद्देश्य हमास का खात्मा है। उनका कहना है कि जब तक हमास रहेगा, तब तक गाजा में स्थायी शांति नहीं आ सकती। इज़राइल के सैन्य अभियान ने हमास की कई सुरंगों और ठिकानों को ध्वस्त कर दिया है, लेकिन इससे गाजा के नागरिकों की स्थिति और भी बदतर हुई है। वे दो पाटों के बीच फंसे हुए हैं एक तरफ इज़राइली हमले, दूसरी तरफ हमास की सख्ती।

इस विरोध प्रदर्शन ने एक नई बहस को जन्म दिया है  क्या गाजा में हमास का अंत करीब है? क्या गाजा की जनता अब एक नई सरकार चाहती है? क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और गाजा को एक नए प्रशासनिक ढांचे में डालना चाहिए? ये सवाल अब केवल राजनीतिक नहीं रहे, बल्कि मानवीय हैं। गाजा के लोगों ने यह संदेश दिया है कि वे केवल शांति चाहते हैं, वे अब किसी भी पक्ष के लिए युद्ध का साधन नहीं बनना चाहते।

हालांकि, इस विरोध प्रदर्शन के बाद हमास ने कड़ी कार्रवाई की है। प्रदर्शनकारियों की पहचान कर उन्हें डराने-धमकाने और गिरफ्तार करने की खबरें आई हैं। लेकिन क्या यह उनकी आवाज़ को दबा सकता है? इतिहास बताता है कि जब जनता एक बार अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ी होती है, तो उसे दबाना आसान नहीं होता। गाजा के नागरिकों ने जो साहस दिखाया है, वह आने वाले दिनों में और बड़े बदलावों का संकेत दे सकता है।

यह विरोध केवल हमास के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह एक संकेत था कि गाजा के नागरिक अब अपने भविष्य को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। वे अब और कठपुतली बनकर नहीं जी सकते। उन्हें एक ऐसा शासन चाहिए जो उनके अधिकारों की रक्षा करे, न कि उन्हें युद्ध के मैदान में झोंके। यह विरोध उनके धैर्य की सीमा पार हो जाने का प्रतीक था, यह उनकी उम्मीदों और हताशा की अंतिम गुहार थी।

अब यह देखना बाकी है कि इस विरोध का गाजा की राजनीति और हमास के शासन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। क्या यह एक नए बदलाव की शुरुआत है? क्या यह संकेत है कि गाजा के नागरिक अब एक स्थायी समाधान चाहते हैं? क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस विरोध को गंभीरता से लेगा और गाजा के लिए एक नया समाधान निकालेगा? आने वाले दिनों में इन सवालों के जवाब मिलेंगे, लेकिन इतना निश्चित है कि गाजा के नागरिकों ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि वे और संघर्ष नहीं चाहते। उनका एक ही उद्देश्य है  शांति, स्थिरता और एक बेहतर जीवन।

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