भारत में गणेश उत्सव केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह आस्था, उत्साह और संस्कृति का संगम है। गणेशोत्सव का आरंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होता है, जिसे गणेश चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन घर-घर और सार्वजनिक मंडपों में गणपति बाप्पा की मूर्ति का आगमन और स्थापना होती है। इसी तरह विशेष पूजा-अर्चना और उत्सव के बाद गणेश जी का विसर्जन सम्पन्न होता है।
गणपति स्थापना : स्वागत का उत्सव
गणेश चतुर्थी के दिन, भक्त भक्तिभाव से मिट्टी की सुंदर मूर्ति लाते हैं।
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आमतौर पर सुबह या शुभ मुहूर्त में गणेश जी का आवाहन कर उन्हें घर या मंडप में प्रतिष्ठित किया जाता है।
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मूर्ति रखने से पहले पूजा स्थल को स्वच्छ किया जाता है और रंगोली बनाई जाती है। फूलों और आम्रपल्लवों (आम के पत्तों) से मंडप सजाया जाता है।
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मूर्ति की स्थापना के समय कलश पूजन, पंचोपचार पूजा और मंत्रोच्चार किया जाता है।
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भक्त “गणपति बाप्पा मोरया” के जयघोष के साथ उनकी आरती करते हैं।
यह परंपरा महाराष्ट्र से शुरू होकर पूरे देश और विदेश तक फैली है।
उत्सव के दिन : आस्था और उल्लास
गणपति स्थापना के बाद भक्तगण अगले 1 दिन, 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन, 9 दिन या पूरे 11 दिन तक उनकी सेवा और पूजा करते हैं।
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सुबह-शाम गणपति की आरती होती है।
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प्रसाद के रूप में मोड़क और लड्डू चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें गणेश जी का प्रिय भोग माना जाता है।
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इस दौरान जगह-जगह भजन, धार्मिक झांकी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।
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भक्त हर दिन गणपति जी से परिवार की खुशहाली और बाधा निवारण की प्रार्थना करते हैं।
विसर्जन : भावुक विदाई
गणपति उत्सव के अंत में अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहते हैं, गणेश मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
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विसर्जन से पहले गणेश जी की आखिरी आरती और पूजन होता है।
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इसके बाद ढोल-ताशों, गीत-संगीत और नृत्य के साथ गणपति बाप्पा को घर या मंडप से विदा किया जाता है।
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भक्त कहते हैं – “गणपति बाप्पा मोरया, अगले वर्ष तू जल्दी आ”।
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मूर्ति को किसी नदी, सरोवर या समुद्र में विसर्जित किया जाता है।
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आजकल पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गणपति स्थापना और विसर्जन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह समाज को बाँधने वाले अवसर भी हैं।
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परिवार और समाज मिलकर उत्सव मनाते हैं।
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यह त्योहार एकता, भाईचारे और सामूहिकता की भावना प्रकट करता है।
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विश्वास है कि गणेश जी की स्थापना से जीवन में नई ऊर्जा आती है और उनके जाने के बाद भी उनका आशीर्वाद हमारे साथ बना रहता है।
तिथियों का सारांश (2025 के अनुसार)
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गणेश स्थापना (गणेश चतुर्थी) : सोमवार, 25 अगस्त 2025
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गणपति विसर्जन (अनंत चतुर्दशी) : बुधवार, 3 सितंबर 2025
कहानी का भावनात्मक पक्ष
कहते हैं कि गणपति बाप्पा कुछ दिनों के लिए हमारे घर आकर परिवार का हिस्सा बन जाते हैं। छोटे-से बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, हर कोई उन्हें परिवार का सदस्य मानकर सेवा करता है।जब विसर्जन का समय आता है, तो आंखें नम हो जाती हैं। फिर भी दिल में यही विश्वास रहता है कि “बाप्पा अगले साल फिर आएंगे, और हमारे जीवन में खुशियों की बरसात करेंगे।”गणपति स्थापना और विसर्जन भारतीय संस्कृति का जीवंत उत्सव है। इसमें श्रद्धा, विश्वास, आनंद और सामाजिक एकता सब कुछ है। यह उत्सव हमें सिखाता है कि जीवन में सृजन और विसर्जन दोनों ही अनिवार्य हैं। इसीलिए गणपति बाप्पा का आगमन और उनका विदाई लेना दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।