महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौटे देवेंद्र फडणवीस फुल एक्शन में है. मंत्रियों के ओएसडी और सचिव की नियुक्ति के मामले में जिस तरह के तेवर फडणवीस ने अख्तियार कर रखा है, उससे महायुति के सहयोगी दल बेचैन हो गए हैं. सीएम ने साफ तौर पर कहा कि ओएसडी और निजी सचिव किसी दलाल को हरगिज नहीं बनाएंगे, फिर भले ही कोई नाराज हो, लेकिन किसी भी विवादित नाम की मंजूरी नहीं देंगे. डिप्टी सीएम शिंदे से जुड़े मामले में भी फडणवीस ऐसे ही रुख अपनाए हैं. इस तरह किसी प्रेशर पॉलिटिक्स में आए बिना मुख्यमंत्री खुलकर खेल रहे हैं, जिसके चलते उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी मुरीद हो गई और फडणवीस की कसीदे गढ़ने लगी है.
सीएम फडणवीस ने मंत्रियों के ओएसडी और सचिव की नियुक्ति के मामले में जिस तरह से कदम उठाए हैं, उसके जरिए सियासी संदेश दे दिया है. मंत्रियों के ओएसडी और सचिव की नियुक्त के लिए 125 नाम भेजे गए थे, जिसमें सीएम ने 109 नामों को मंजूरी दी है जबकि 16 नामों को रोक दिया है. मंत्रियों के निजी सचिव और ओएसडी की नियुक्ति का अधिकार सीएम के पास है. ऐसे में फडणवीस किसी भी ऐसे सचिव और ओएसडी की नियुक्ति नहीं करना चाहते हैं, जिसे लेकर विवादों में घिरे या फिर उनकी छवि को नुकसान हो.
फडणवीस ने दिखाए सख्त तेवर
फडणवीस ने जिन नामों को मंजूरी नहीं दी, उन पर किसी न किसी प्रकार के आरोप हैं या उनके खिलाफ किसी तरह की जांच चल रही है. सीएम देवेंद्र फडणवीस ने साफ तौर पर कहा कि भले ही कोई नाराज हो, लेकिन किसी भी विवादित और फिक्सर टैग वाले नामों की नियुक्ति नहीं दूंगा. इस तरह के फैसले से भले ही किसी को ठेस पहुंचे, लेकिन वो पीछे नहीं हटेंगे. इस तरह से फडणवीस ने मंत्रियों की ओएसडी और निजी सचिव की नियुक्ति में 16 नामों को खारिज कर सख्त संदेश देने की कवायद की है.
महाराष्ट्र में फडणवीस के अगुवाई वाली महायुति सरकार में बीजेपी कोटे ही मंत्री नहीं बल्कि अजीत पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता मंत्री हैं. महायुति सरकार बनने के बाद से फडणवीस अलग तेवर और अंदाज में है. सरकार के तमाम ऐसे फैसले पलट दिए हैं, जिन पर किसी तरह से सवाल उठाए जा रहे रहे थे. फडणवीस ने शिंदे सरकार के फैसलों को भी पलटना में देरी नहीं किया. इतना ही नहीं पिछली कई योजनाओं की समीक्षा करने के भी आदेश दे दिए हैं.
ओएसडी और निजी सचिव की नियुक्त से लेकर कई मंत्रियों ने ऐतराज भी जताया, लेकिन फडणवीस ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि किसी भी विवादित नाम को मंजूरी नहीं देंगे. इस तरह महाराष्ट्र सरकार की छवि को पूरी तरह से क्लीन बनाए रखने की स्ट्रैटजी पर फडणवीस चल रहे हैं, जिसके लिए सहयोगी दलों के दबाव की परवाह नहीं कर रहे हैं. सीएम फडणवीस के काम करने का अंदाज और तेवर पूरी तरह से पीएम मोदी की स्टाइल जैसा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से बिना किसी दबाव में आए काम करते हैं, उसी नक्शेकदम पर सीएम फडणवीस भी चलते नजर आ रहे हैं.
मंत्रियों के OSD और सचिव नियुक्त
महाराष्ट्र में एक मंत्री को एक निजी सचिव और तीन ओएसडी सहित 35 स्टाफ रखने का अधिकार है. इनकी नियुक्ति की मंजूरी का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है. प्रशासन विभाग के दावारा नियुक्ति की जाती है, जिसका कार्यभार सीएम फडणीस के पास है. मंत्रियों के पीए-ओएसडी और स्टाफ की नियुक्त किए जाने वाले लोगों को सरकारी कर्मचारी होना चाहिए, जो कम से कम स्नातक होने चाहिए. इसके अलावा उनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा हो, प्रशासनिक अनुभव और संचार कौशल भी होना चाहिए.
किसी भी सरकार चाहे राज्य की हो या फिर केंद्र की. सरकार के कामकाज का जिम्मा मंत्रियों के इन्हीं ओएसडी और निजी सचिव के पास होता है. एक तरह से सरकार के कामों को जमीन पर उतारने और लोगों को तक पहुंचाने का काम सचिव और ओएसडी के हाथ में होता. यही वजह है कि सीएम देवेंद्र फडणवीस किसी भी तरह की कोई भी कमी सचिव और ओएसडी की नियुक्ति में नहीं रखना चाहते हैं. यही नहीं किसी भी दागदार छवि वाले की नियुक्ति करने से परहेज किया है.
सीएम की मुरीद हुई उद्धव की सेना
फडणवीस के द्वारा लिए गए फैसले पर शिंदे और अजीत पवार दोनों ही चुप्पी अख्तियार कर रखी है. हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने जरूर कहा कि फडणवीस ने मंत्रियों के ओएसडी और निजि सचिव की नियुक्ति में बेहतर कदम उठाए हैं. उन्होंने जिस तरह से नियुक्ति में सख्त कदम उठाए हैं, वो काबिले तारीफ है. राउत ने कहा कि ओएसडी और निजि सचिव की नियुक्ति में जिन 16 नामों को खारिज किया हैं, उसमें अधिकांश शिंदे की शिवसेना कोटे के मंत्रियों के हैं. शिवसेना के मंत्रियों द्वारा पेश किए गए 13 नामों को खारिज कर दिया गया जबकि अजीत पवार की एनसीपी के तीन नाम खारिज किए हैं.
फडणवीस पूरी सावधानी बरत रहे हैं और फूंक-फूंक कदम उठा रहे हैं. ऐसे में ओएसडी और निजी सचिव की नियुक्ति में फडणवीस के फैसले से साफ हो गया कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की निति को अपनाए रखेंगे. इस तरह उनकी कोशिश भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन बनाए रखने की है और उसके लिए कठोर निर्णय लेने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं. इस तरह एक उदाहरण स्थापित करना होता हैं कि सरकार का मुखिया अगर बिना किसी दबाव में आए काम करता है और नियुक्ति में सावधानी बरतता है तो फिर सरकार के कामकाज पर कोई सवाल नहीं खड़े होंगे.
एकनाथ शिंदे के साथ चल रहे कोल्ड वार के बीच फडणवीस बिना किसी प्रेशर पॉलिटिक्स में आए हुए काम कर रहे हैं. ऐसे में उन्होंने पिछली सरकार के कई फैसलों पर ब्रेक लगा दी है. बसों की खरीद पर रोक, जालना हाउसिंग प्रोजेक्ट की जांच के बाद सरकार ने फसल खरीदने वाली एजेंसियों के लिए नई पॉलिसी बनाने का ऐलान किया है. फडणवीस के एक्शन से विपक्ष ही नहीं महायुति सरकार के सहयोगी दल भी बेचैन हैं. एकनाथ शिंदे ने जरूर यह कहा कि उन्हें हल्के में लेने की गलती न करें, लेकिन फडणवीस किसी भी परवाह में नहीं है. सरकार की छवि को पूरी तरह साफ-सुथरा बनाए रखने की निति पर चल रहे हैं.
मोदी स्टाइल में काम कर रहे फडणवीस
फडणवीस के पीएम मोदी वाले अवतार से महाराष्ट्र में सियासी खलबली है. एक तरफ शिंदे जहां गृह विभाग से शुरू हुए रुठने के सिलसिले से अब तक नाराज है तो वहीं अजित पवार भी फूंक-फूंककर कदम उठा रहे हैं. पीएम मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने प्रदेश में ऐसी ही व्यवस्था लागू की थी, जिसे वह अभी तक बनाए हुए हैं. पीएमओ में बार-बार जाने वालों को न सिर्फ स्क्रीनिंग होती है बल्कि पूछताछ होती है. गुजरात के सीएमओ में सीएम से मिलने वालों प्रोफाइल चेक होता है. कुछ ऐसी ही व्यवस्था सीएम फडणवीस ने महाराष्ट्र के सीएमओ यानी मंत्रालय में लागू कर दी है.
फडणवीस ने मंत्रालय में आने वाले लोगों की निगरानी और स्क्रीनिंग के लिए एफआरएस सिस्टम लागू कर दिया. सरकार की तरफ से ऐसा करने के लिए पीछे सुरक्षा का हवाला दिया गया है. हालांकि, पहले एक पास इश्यू करवाकर लोग कई मंत्रियों से मिलते थे. अब ऐसा नहीं है. जिस मंत्री के लिए पास जारी हुआ लोग अब उसी से मिल रहे हैं. महाराष्ट्र के मंत्रालय में लगाए गए नए एफआरएस सिस्टम बार-बार आने वाले लोगों की पहचान भी सुनिश्चित हो जाती है.
फडणवीस ने शिवसेना और एनसीपी के कोटे में गए विभागों में असिस्टेंट सेक्रेटरी के तौर पर कुछ अफसरों की नियुक्ति की है. फडणवीस ने यह कदम उठाकर सभी विभागों पर अपनी नजर गढ़ा दी है ताकि पारदर्शिता बनी रहे, क्योंकि सरकार का चेहरा इस बार फडणवीस है. अगर किसी विभाग में कोई गड़बड़ी होती है तो सरकार के मुखिया के तौर पर फडणवीस ही विपक्ष के निशाने पर होंगे. इसीलिए हर एक नियुक्त फडणवीस की नजर से होकर गुजर रही है और किसी भी विवादित नियुक्ति या फिर फैसले पर उनकी कलम नहीं चल रही है.
सीएम फडणवीस के तेवर और काम से भले ही सहयोगी बेचैन हो, लेकिन उनके विरोधी उद्धव ठाकरे की शिवसेना मुरीद हो गई है. शिवेसना के मुख्यपत्र सामना में 26 फरवरी को संपादकीय में फडणवीस के कामों की तारीफ की गई है. सामना में साफ कहा कि फडणवीस ने मंत्रियों के ओएसडी और निजि सचिव की नियुक्ति के मामले में बेहतर कदम उठाए हैं.
शिंदे को निशाने पर लेते हुए सामाना में कहा गया है कि शिंदे की पिछली सरकार में फिक्सर और दलालों का बढ़ावा दिया गया था, जिसके चलते महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला था. फडणवीस सरकार ने अब भ्रष्टाचार रोकने के लिए नए नियम लागू किया हैं. शिवसेना (यूबीटी) के मुख्यपत्र सामना में दूसरी बार फडणवीस के कामों की तारीफ की गई है. जनवरी में नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली का फडणवीस के दौरे की तारीफ की थी. फडणवीस की प्रशंसा को शिवसेना (यूबीटी) द्वारा मुख्यमंत्री और बीजेपी के साथ अपनी निकटता बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
फडणवीस खुलकर क्यों खेल रहे हैं?
फडणवीस इसलिए कि वे ऐसा कर रहे हैं और खुलकर खेल रहे हैं. इसके पीछे महाराष्ट्र में बढ़ी बीजेपी की ताकत है. फडणवीस भले ही एकनाथ शिंदे की शिवेसना और अजीत पवार की एनसीपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हों, लेकिन बीजेपी की भी अपनी ताकत है. बीजेपी के पास बहुमत के लिए सिर्फ 13 विधायक कम हैं, जबकि शिंदे की शिवसेना के पास 57 और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास 41 विधायक हैं. इस तरह से फडणवीस सरकार बहुत ज्यादा शिंदे पर निर्भर नहीं है. इसकी वजह यह है कि राष्ट्रीय समाज पक्ष समेत छोटे दलों के चार और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है.
महाराष्ट्र में बीजेपी के पक्ष में 138 विधायक के साथ मजबूती स्थिति में खड़ी है. अगर अजित पवार और शिंदे सेना समर्थन वापस लेती है तो बीजेपी को सरकार बचाने के लिए 3विधायकों की जरूरत पड़ेगी जबकि दूसरी ओर शरद पवार के पास 9 विधायक हैं, जो आपातस्थिति में सरकार बचाने के लिए काफी हैं. हालांकि, अजित पवार और फडणवीस के रिश्ते अभी तक मधुर ही हैं. ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे किसी कारण से महायुति से अपनी राह जुदा करते हैं तो फडणवीस सरकार को कोई खतरा नहीं होगा. इसीलिए फडणवीस खुलकर खेल रहे हैं.