धर्म और राजनीति के बीच एक साथ होली-रमजान

धर्म और राजनीति के बीच एक साथ होली-रमजान

 

   अजय कुमार

देश में इन दिनों एक अजीब सा माहौल बना हुआ है, खासकर होली और रमजान के जुमे की नमाज के एक साथ पड़ने के बाद। करीब 64 सालों के बाद ऐसा एक मौका आया है जब दोनों धर्मों के त्योहार एक ही दिन पर आकर टकरा गए हैं, और इसने समाज में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या यह हमारे देश के लिए सौभाग्य का पल है कि हिंदू और मुसलमान दोनों अपने त्योहार एक ही दिन मना सकते हैं, या फिर यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें सियासत और धार्मिक असहमति के कारण हम इन त्योहारों को शांति से मना नहीं पाएंगे?

कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के संभल जिले के सर्कल ऑफिसर, अनुज चौधरी का बयान सामने आया था, जिसने इस बहस को और बढ़ा दिया। उन्होंने कहा कि जिन मुसलमानों को होली के रंगों से परेशानी है, उन्हें जुमे की नमाज अपने घर पर पढ़नी चाहिए। यह बात सीधे तौर पर कही गई थी, और इसका मकसद सिर्फ यह था कि एक दिन के लिए रंगों से बचने का सुझाव दिया गया था। लेकिन इस बयान को लेकर सोशल मीडिया से लेकर राजनीति तक हलचल मच गई। कई नेताओं ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक बयान बताया, जबकि कई लोग इसे केवल शांति बनाए रखने की एक कोशिश मानते हैं।

उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक इस बयान पर जमकर बवाल मचा। हर कोई अपनी-अपनी बात रख रहा था, और कई लोग इसे राजनीति से जोड़कर देख रहे थे। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस बयान का समर्थन किया, जिसके बाद यह मामला और गरमा गया। राज्यसभा सांसद उदित राज और अन्य विपक्षी नेताओं ने इस बयान पर विरोध जताया, और इसे एक धर्म विशेष के खिलाफ बताने की कोशिश की। लेकिन इन सब के बीच, कई मुस्लिम धार्मिक नेता भी सामने आए, जिन्होंने अनुज चौधरी की बात को समझते हुए, जुमे की नमाज का समय बदलने की पहल की। उनका कहना था कि इस तरह से हम हिंदू-मुसलमान भाईचारे को बनाए रख सकते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने यह भी कहा कि वे होली के दिन जुमे की नमाज का समय बदलने के लिए तैयार हैं, ताकि कोई भी असुविधा न हो। लखनऊ में ईदगाह मस्जिद के इमाम ने ऐलान किया कि 14 मार्च को जुमे की नमाज दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर नहीं, बल्कि दो बजे पढ़ी जाएगी। इससे यह साफ होता है कि इस देश के कुछ धार्मिक नेता शांति और भाईचारे के पक्षधर हैं, और वे इस मुद्दे को लेकर किसी तरह की कड़ी बयानबाजी से बचने का प्रयास कर रहे हैं।

इस बवाल के बीच, यह सवाल उठता है कि क्या हम अभी तक इतने परिपक्व नहीं हो पाए हैं कि हम एक साथ दो अलग-अलग धर्मों के त्योहारों को मना सकें? क्या हम अपने त्योहारों को दूसरे धर्मों के त्योहारों से जोड़ने की बजाय, केवल अपनी-अपनी धार्मिक पहचान को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? शायद, यही वह वजह है कि हमारे समाज में सियासत और धार्मिक भावनाओं को जोड़कर देखा जाता है। यह हमेशा सवाल खड़ा करता है कि क्या हम सच में एक दूसरे के त्योहारों को समझते हैं और उनका सम्मान करते हैं, या फिर हम केवल अपने धर्म की श्रेष्ठता साबित करने में व्यस्त रहते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में सियासत की भूमिका भी साफ नजर आती है। बिहार में चुनाव आने वाले हैं, और यह माना जा रहा है कि कुछ राजनीतिक दलों को यह मौका मिल गया है कि वे अपनी पार्टी के कोर वोटर्स को इस मुद्दे के जरिये एकजुट कर सकें। भाजपा से लेकर कांग्रेस तक सभी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय दी है, और इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़ा है। चुनावी लाभ के लिए किसी भी सियासतदान को शांति और सौहार्द की चिंता कम ही दिखती है। बल्कि, ऐसे मुद्दों पर बयानबाजी को वे अपने पक्ष में बनाने की कोशिश करते हैं, ताकि उनका आधार मजबूत हो सके।

कुछ नेताओं ने तो यह तक कह दिया कि अगर मुसलमानों को होली के रंगों से दिक्कत है, तो उन्हें अलग वॉर्ड में इलाज के लिए भेज देना चाहिए। यह बयान न केवल निंदनीय है, बल्कि यह समाज में नफरत फैलाने का एक तरीका भी है। जब तक हम इस तरह की बयानबाजी और राजनीति से बाहर नहीं निकलते, तब तक हम सच्चे भाईचारे की मिसाल नहीं पेश कर सकते।

लेकिन इसके विपरीत, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि हिंदू-मुसलमान को एक साथ त्योहार मनाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह तो केवल हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हम इसे किस तरह से देखते हैं। अगर हम अपनी धार्मिक पहचान से बाहर निकलकर एक दूसरे की खुशी में शामिल होने की सोचें, तो शायद हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं। जैसे कि इस्लाम में भी, होली के रंगों से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह एक सामाजिक त्योहार है। अगर हम एक दूसरे के धर्म और संस्कृति का सम्मान करेंगे, तो यह समाज में शांति और सौहार्द बढ़ाने में मदद करेगा।

अगर हम यह सोचें कि हम एक-दूसरे के धर्म के त्योहारों में शामिल नहीं हो सकते, तो हम कभी भी एक बेहतर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। होली के रंग और रमजान का रोजा दोनों ही एक दूसरे से संबंधित नहीं हैं, लेकिन जब दोनों मिलकर एक साथ आते हैं, तो हम क्यों न इसे एक अच्छे अवसर के रूप में देखें, जिससे हम अपनी पुरानी नफरत और असहमति को खत्म कर सकें?

संभल जिले के सीओ अनुज चौधरी का बयान इस बात का प्रतीक था कि अगर हम सभी थोड़ी समझदारी से काम लें, तो हम एक दूसरे के त्योहारों को बिना किसी परेशानी के मना सकते हैं। उन्होंने जो कहा, वह कोई नया या अनोखा नहीं था, बल्कि यह एक सुझाव था कि अगर हम थोड़ी समझदारी से काम लें, तो कोई भी समुदाय एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए शांति से त्योहार मना सकता है।

यह समय है कि हम सभी यह समझें कि हमारे त्योहार हमारी धार्मिक पहचान का हिस्सा हैं, लेकिन साथ ही वे हमारे समाज की समरसता और भाईचारे को बढ़ाने का भी एक अवसर हो सकते हैं। अगर हम अपनी सोच और मानसिकता को बदलें, तो हम उन धर्मों और संस्कृतियों के बीच की दीवारें तोड़ सकते हैं, जो हमसे हमेशा एक-दूसरे को अलग करती रही हैं।समाज को यह समझना होगा कि रंगों के खेल और नमाज के समय में कोई विरोधाभास नहीं है। अगर हम इसे सही ढंग से संभालें, तो यह हमारे देश में सौहार्द और शांति का प्रतीक बन सकता है।

इस देश में हिंदू और मुसलमान के बीच कई दशकों से एक दुराव और असहमति की भावना रही है, लेकिन क्या हम अपने इस पुराने रवैये को बदल सकते हैं? क्या हम यह समझ सकते हैं कि हमारे त्योहार और परंपराएं हमारी पहचान हैं, लेकिन इनका मतलब दूसरों की भावना को आहत करना नहीं होना चाहिए। होली और रमजान एक दूसरे के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि ये दोनों त्योहार एक-दूसरे के साथ मिलकर हमारी विविधता और संस्कृति की सुंदरता को बढ़ा सकते हैं।

होली का पर्व रंगों का है, और रमजान का रोजा आत्म-नियंत्रण और इबादत का। दोनों ही अपने-अपने तरीके से समाज में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने का एक माध्यम हो सकते हैं। अगर हम इन दोनों त्योहारों को एक साथ मनाते हैं, तो हम सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक मजबूत और समृद्ध समाज की ओर बढ़ सकते हैं।

राजनीतिक दलों और नेताओं को चाहिए कि वे इस मौके का लाभ शांति और सौहार्द बढ़ाने के लिए उठाएं, न कि इसे वोट बैंक की राजनीति में तब्दील कर दें। अगर हम अपनी राजनीति और धार्मिक भावनाओं से ऊपर उठकर सोचें, तो हम निश्चित रूप से एक बेहतर समाज बना सकते हैं, जिसमें हर धर्म, जाति और समुदाय के लोग एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करते हुए शांति से रहते हैं।समाज में भाईचारे और शांति की आवश्यकता सबसे ज्यादा है, और यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इन त्योहारों को एक-दूसरे के साथ मिलकर मनाएं, न कि इन्हें एक विवाद का कारण बनाएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *