बिहार विधानसभा चुनावों की आहट के बीच देश की सियासत में अचानक एक तूफान उठा है। यह तूफान न बिहार से आया, न ही बंगाल या दिल्ली से… बल्कि यह उठा है महाराष्ट्र की उन चुनावी गलियों से जहां भाजपा ने हाल ही में इतिहास रच दिया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में भाजपा और उसकी सहयोगी महायुति ने 287 में से 235 सीटें जीतकर विपक्ष को ऐसा पछाड़ा कि एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) की साझा ताकत भी सिर्फ 49 पर सिमट कर रह गई। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, यहीं से शुरू होता है एक नया अध्याय…एक ऐसा अध्याय जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर दिया है।राहुल गांधी ने दावा किया है कि महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में भारी पैमाने पर धांधली हुई है। उन्होंने इस धांधली को “लोकतंत्र में मैच फिक्सिंग” करार दिया और एक लेख के माध्यम से आरोप लगाया कि यह पांच चरणों में रची गई एक संगठित साजिश थी, जिसमें चुनाव आयोग ने भाजपा के साथ मिलकर मतदाता सूची से लेकर मतगणना तक को प्रभावित किया। राहुल का आरोप है कि यह केवल एक राज्य का मामला नहीं है, बल्कि एक बड़े लोकतांत्रिक संकट की शुरुआत है।
राहुल ने सबसे बड़ा सवाल उठाया मतदाता सूची में भारी फेरबदल पर। उन्होंने लिखा कि 2019 में महाराष्ट्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में 9.29 करोड़ हो गई। लेकिन इसी 2024 के नवंबर में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो महज 5 महीने के भीतर मतदाताओं की संख्या 9.70 करोड़ पहुंच गई। यानी पांच साल में जहां 31 लाख वोटर जुड़े, वहीं पांच महीने में 41 लाख! राहुल के मुताबिक यह आंकड़ा ‘सामान्य नहीं’, बल्कि ‘साजिश’ का संकेत है।इस आरोप ने विपक्षी खेमे में गर्मी ला दी। बिहार में तेजस्वी यादव ने राहुल का समर्थन किया और कहा कि चुनाव आयोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। कुछ कांग्रेस नेताओं ने तो चुनाव आयुक्तों का नार्को टेस्ट कराने की मांग तक रख दी। वहीं बीजेपी ने इसे हार के बाद कांग्रेस की बौखलाहट बताया और कहा कि राहुल गांधी लगातार हारने के बाद अब लोकतंत्र की संस्थाओं पर अविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन यह सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की कहानी नहीं है, आंकड़े भी अपनी कहानी कहते हैं। चुनाव आयोग ने तुरंत राहुल गांधी के आरोपों को “मनगढ़ंत और तथ्यविहीन” करार दिया। आयोग ने कहा कि मतदाता सूची एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें हर वर्ष नाम जोड़े और हटाए जाते हैं। आयोग ने बताया कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच मतदाताओं की संख्या में जो वृद्धि हुई है, वह सामान्य है और इससे पहले भी ऐसा हुआ है।
अगर हम इतिहास को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि राहुल के तर्क अधूरे हैं। 2009 के विधानसभा से 2014 के लोकसभा चुनाव के बीच महाराष्ट्र में 48 लाख से अधिक वोटर जुड़े थे। उसी दौरान 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच 27 लाख वोटर और जुड़े। यानी पांच साल और फिर छह महीने में लगभग 75 लाख नए मतदाता जोड़े गए थे। यह संख्या 2019 से 2024 के बीच की मतदाता वृद्धि से कहीं अधिक है। यानी यह दावा कि 2024 में ही असामान्य वृद्धि हुई है, ऐतिहासिक डेटा के आधार पर टिकता नहीं है।राहुल गांधी ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र की वयस्क आबादी लगभग 9.54 करोड़ है, जबकि मतदाता सूची में 9.70 करोड़ लोग दर्ज हैं, जो असंभव है। लेकिन यहां भी तथ्य उनका साथ नहीं देते। क्योंकि देश में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है। ऐसे में जनसंख्या के अनुमानित आंकड़े पूर्णतः विश्वसनीय नहीं माने जा सकते। ऊपर से जिन आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान निकाला गया है, वे पुराने और अनुमानात्मक हैं। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता बनने की पात्रता 18 वर्ष की आयु पूरी करना है, और यह लगातार प्रक्रिया है। ऐसे में थोड़ी बहुत संख्या में मतदाताओं की संख्या अनुमान से अधिक हो सकती है।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले की मतदाता सूची सभी राजनीतिक दलों को दी गई थी। अगर उन्हें उस समय कोई आपत्ति थी तो वे उस समय प्रक्रिया के तहत उसे चुनौती दे सकते थे। लेकिन किसी भी प्रमुख दल ने उस समय कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। आयोग के अनुसार सिर्फ 89 शिकायतें आईं, जिनमें से अधिकतर सामान्य थीं और उन पर कार्रवाई हुई।वहीं बीजेपी ने राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जब 2009 और 2014 में उनके शासनकाल में इतने अधिक मतदाता जुड़े तब राहुल चुप थे, लेकिन अब जब उन्हें हार का सामना करना पड़ा तो वे लोकतंत्र के स्तंभों पर ही सवाल उठा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “धूल चेहरे पर थी, आइना साफ करते रहे…। उनका इशारा साफ था कि कांग्रेस अपनी गलतियों को देखने की बजाय सिस्टम को दोष दे रही है।
दिलचस्प बात यह है कि राहुल गांधी ने अपने लेख में चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जैसे कि अंतिम वोटिंग आंकड़े छिपाना, CCTV फुटेज जारी न करना, और डिजिटल वोटर लिस्ट को सार्वजनिक न करना। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब निष्पक्ष नहीं रही क्योंकि सरकार ने नए कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट के जज की जगह केंद्रीय मंत्री को समिति में शामिल कर लिया है। उनका आरोप है कि आयोग अब भाजपा सरकार के इशारों पर काम कर रहा है।राहुल की इस रणनीति का असर बिहार की राजनीति पर भी दिख रहा है। विपक्ष अब चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। लेकिन क्या ये सवाल जनता के बीच विश्वास जगाएंगे या फिर यह कांग्रेस के लिए उल्टा असर करेंगे, ये देखना बाकी है।
एक बात तो तय है कि यह मामला अब महज महाराष्ट्र या कांग्रेस बनाम भाजपा का नहीं रहा। यह मामला लोकतंत्र की उस बुनियाद से जुड़ गया है, जिस पर भारत की सबसे बड़ी ताकत टिकी है निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव। अगर चुनाव आयोग पर बार-बार इस तरह के आरोप लगते हैं तो वह संस्थान कमजोर होता है, और यदि बिना सबूत लगाए जाते हैं, तो राजनीतिक संस्कृति का गिरना तय है।राहुल गांधी की रणनीति स्पष्ट है आम चुनाव में करारी हार के बाद अब वह विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में हैं। वह मुद्दों को भावनात्मक रूप से उठाकर लोगों को फिर से जोड़ना चाहते हैं। लेकिन क्या यह रणनीति काम करेगी? क्या भारत की जनता इन आरोपों को गंभीरता से लेगी? या फिर यह माना जाएगा कि कांग्रेस हार का ठीकरा आयोग पर फोड़ रही है?बिहार चुनावों में यह सवाल और भी अहम हो जाएगा। अगर विपक्ष यहां बेहतर प्रदर्शन करता है तो राहुल की बातों को तवज्जो मिलेगी, वरना ये आरोप भी बीते दिनों की धूल बनकर रह जाएंगे।