लखनऊ की सियासी गलियों में सोमवार की शाम उस वक्त हलचल मच गई, जब भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह अचानक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास पर पहुंचे। यह मुलाकात कोई साधारण भेंट नहीं थी, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू करने की कवायद थी। करीब पैंतालीस मिनट तक चली इस मुलाकात ने सियासी हलकों में चर्चा की लहर पैदा कर दी। बृजभूषण, जो पिछले कुछ समय से अपनी बयानबाजी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के प्रति नरम रुख के लिए सुर्खियों में थे, इस मुलाकात के बाद एक बार फिर सियासत के केंद्र में आ गए।
बृजभूषण शरण सिंह पूर्वांचल के कैसरगंज, गोंडा, बहराइच और श्रावस्ती जैसे इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ के लिए जाने जाते हैं। उनकी दबंग शैली और खुलकर बोलने की आदत ने उन्हें हमेशा चर्चा में रखा। लेकिन पिछले कुछ सालों से उनके और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच सियासी दूरी की खबरें जोरों पर थीं। बृजभूषण ने कई बार योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए, चाहे वह बुलडोजर कार्रवाई हो या प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मुद्दा। इतना ही नहीं, उन्होंने अखिलेश यादव को ‘छोटा भाई’ कहकर और उनकी धार्मिकता की तारीफ करके बीजेपी के भीतर हलचल पैदा कर दी थी। एक साक्षात्कार में उन्होंने साफ कहा था, “मैं बीजेपी का हूं, लेकिन योगी जी से मुलाकात की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि न उन्हें मुझसे काम है, न मुझे उनसे।” फिर अचानक यह मुलाकात क्यों?
लखनऊ के पांच कालीदास मार्ग पर स्थित मुख्यमंत्री आवास में बृजभूषण का यह पहला दौरा नहीं था, लेकिन तीन साल बाद हुई इस मुलाकात ने सबको चौंका दिया। सूत्रों के मुताबिक, यह मुलाकात बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर हो सकती थी, जो 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पुराने नेताओं को साधने की कोशिश में है। मुलाकात के बाद जब पत्रकारों ने बृजभूषण से सवाल किया कि क्या खास बात हुई, तो उन्होंने बस इतना कहा, “मुख्यमंत्री से मुलाकात होनी ही चाहिए, और हुई। यही खास है।” उनकी अनमनी मुस्कान और छोटा-सा जवाब सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया। जानकारों का मानना है कि यह मुलाकात वैसी नहीं रही, जैसी बृजभूषण ने उम्मीद की होगी। अगर वह संतुष्ट होते, तो अपनी बेबाक शैली में खुलकर बात करते, जैसा कि वह अक्सर करते हैं।
पिछले कुछ समय से बृजभूषण शरण सिंह न केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे थे, बल्कि अखिलेश यादव के प्रति नरम रुख दिखाकर बीजेपी के भीतर असहजता पैदा कर रहे थे। उन्होंने कई बार प्रशासनिक भ्रष्टाचार और ठेकों में धांधली को लेकर सरकार पर निशाना साधा। गोंडा और देवीपाटन में सरकारी ठेकों को रद्द करने और अधिकारियों के निलंबन जैसी कार्रवाइयों को उनकी नाराजगी से जोड़कर देखा गया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बृजभूषण इस मुलाकात के जरिए योगी से अपनी दूरी को कम करना चाहते थे। लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज और जवाबों से लगता है कि बातचीत से वह परिणाम नहीं निकला, जिसकी उन्हें उम्मीद थी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर और देवीपाटन से गहरा नाता रहा है। गोरखनाथ मठ की शाखाएं इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं, और योगी जी का इन इलाकों में सामाजिक और धार्मिक प्रभाव है। दूसरी ओर, बृजभूषण का भी देवीपाटन में सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व रहा है। खासकर सरकारी ठेकों और जमीनी मामलों में उनकी दबदबा साफ दिखता है। लेकिन हाल के दिनों में ठेकों और प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर दोनों नेताओं में असहमति की खबरें सामने आईं। सूत्रों का दावा है कि योगी सरकार की सख्ती और बृजभूषण के प्रभाव वाले क्षेत्रों में हुई कार्रवाइयों ने उनके बीच तनाव को बढ़ाया। फिर भी, दोनों नेताओं ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर कुछ नहीं कहा। इस मुलाकात के बाद भी बृजभूषण ने अपनी बात को रहस्यमयी बनाए रखा, जिससे सियासी गलियारों में कयासों का बाजार गर्म हो गया।
बृजभूषण की बयानबाजी और अखिलेश के प्रति उनके नरम रुख ने बीजेपी के भीतर कई सवाल खड़े किए। कुछ लोग मानते हैं कि वह अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए नए रास्ते तलाश रहे हैं। उनके क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का प्रभाव बढ़ रहा है, और अखिलेश के साथ उनकी नजदीकी की खबरें इस बात का संकेत देती हैं। लेकिन बीजेपी के प्रति उनकी निष्ठा पर भी कोई सवाल नहीं उठा सकता, क्योंकि उन्होंने बार-बार कहा है कि वह बीजेपी के सिपाही हैं। फिर भी, योगी से उनकी दूरी और इस मुलाकात का अस्पष्ट परिणाम कई सवाल छोड़ गया। क्या यह मुलाकात बीजेपी के भीतर एकता की कोशिश थी, या फिर बृजभूषण की नाराजगी को शांत करने का प्रयास? क्या वह वाकई में सपा की ओर झुक रहे हैं, या यह सिर्फ अपनी सियासी हैसियत बढ़ाने की रणनीति है?]
लखनऊ से लेकर गोंडा तक, इस मुलाकात की चर्चा हर जुबान पर है। बीजेपी के कार्यकर्ताओं से लेकर विपक्षी दलों तक, सभी की नजर बृजभूषण के अगले कदम पर है। उनके एक बयान से सियासत का रुख बदल सकता है। फिलहाल, यह मुलाकात एक पहेली बनी हुई है, जिसका जवाब शायद वक्त ही देगा। लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में बृजभूषण शरण सिंह अभी और सुर्खियां बटोरेंगे।