SIR विरोध में राहुल कांग्रेस से आगे निकलना चाहते हैं अखिलेश

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया ने 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले सियासी हलकों में तूफान खड़ा कर दिया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक में सबसे आक्रामक रुख अपनाया है, जिससे यह साफ होता है कि वह न केवल इस विवाद को जनता के बीच ले जाना चाहते हैं, बल्कि इस मुद्दे पर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को भी पीछे छोड़ने की रणनीति बना रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सक्रिय है, लेकिन अखिलेश की तेज-तर्रार शैली और सपा की बिहार में जमीन पर गहरी पकड़ ने उन्हें इस आंदोलन का चेहरा बना दिया है। आज, 11 अगस्त 2025 को, इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने संसद भवन के पास और फिर चुनाव आयोग के कार्यालय के निकट एक बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें अखिलेश और राहुल गांधी दोनों ने हिस्सा लिया। यह प्रदर्शन एसआईआर के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता और उनकी रणनीति का प्रतीक बन गया।

एसआईआर प्रक्रिया को लेकर विपक्ष का कहना है कि यह बिहार में मतदाता सूची को ष्साफष् करने के नाम पर गरीब, दलित, आदिवासी, और अल्पसंख्यक समुदायों के मताधिकार को छीनने की साजिश है। अखिलेश यादव ने इसे ष्लोकतंत्र की हत्याष् करार देते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस प्रक्रिया के जरिए उन मतदाताओं को हटाना चाहती है जो उनके खिलाफ वोट दे सकते हैं। उन्होंने विशेष रूप से बिहार के सीमांचल और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया को ष्बैकडोर एनआरसीष् का हिस्सा बताया। अखिलेश की यह बयानबाजी न केवल बिहार के मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश है, बल्कि उत्तर प्रदेश में भी सपा के आधार को मजबूत करने की उनकी रणनीति को दर्शाती है। सपा प्रमुख ने बार-बार इस मुद्दे को संसद से सड़क तक ले जाने की बात कही, और आज के प्रदर्शन में उनकी सक्रियता ने इस दावे को और पुख्ता किया।

दूसरी ओर, राहुल गांधी और कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाया है। राहुल ने संसद के मॉनसून सत्र के दौरान मकर द्वार पर हुए प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और कहा कि एसआईआर ष्भारतीय नागरिकों के अधिकारों को चुरानेष् का प्रयास है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पेश कर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की, जिसमें उन्होंने आधार और पैन कार्ड जैसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले दस्तावेजों को मतदाता सत्यापन के लिए स्वीकार न करने पर सवाल उठाए। कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस प्रक्रिया को ष्लोकतंत्र की हत्याष् बताया। हालांकि, कांग्रेस का यह रुख प्रभावी रहा, लेकिन बिहार में सपा की गहरी पैठ और अखिलेश की तेजी ने सपा को इस मुद्दे पर विपक्षी आंदोलन का नेतृत्व करने का मौका दिया।

11 अगस्त 2025 को, इंडिया ब्लॉक ने अपनी रणनीति को और तेज करते हुए संसद भवन के पास से लेकर चुनाव आयोग के कार्यालय तक मार्च निकाला। इस प्रदर्शन में राहुल गांधी, अखिलेश यादव, राजद की मीसा भारती, टीएमसी के डेरेक ओश्ब्रायन, डीएमके की कनिमोझी, और अन्य विपक्षी नेता शामिल हुए। प्रदर्शनकारी ष्लोकतंत्र बचाओष् और ष्वोट-बंदी बंद करोष् जैसे नारे लगा रहे थे। कई नेताओं ने काले कपड़े पहने और ष्एसआईआररू भारतीय अधिकारों की चोरीष् जैसे नारे लिखे प्लेकार्ड्स लिए हुए थे। अखिलेश ने इस मौके पर कहा, ष्चुनाव आयोग को अपनी स्वायत्तता साबित करनी होगी। यह प्रक्रिया तुरंत रुकनी चाहिए, और बिहार के लोगों को उनके मताधिकार की गारंटी दी जानी चाहिए।ष् उनकी यह मांग न केवल बिहлем में सियासी माहौल को गर्म कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी एकजुटता को मजबूत करने का काम कर रही है।

चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को सही ठहराते हुए कहा कि यह मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए जरूरी है, और अब तक 96.23ः मतदाताओं का सत्यापन हो चुका है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को सत्यापन के लिए स्वीकार नहीं किया जाएगा, जिसे विपक्ष ने गरीब और ग्रामीण मतदाताओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे पर सुनवाई हुई, जहां कोर्ट ने प्रक्रिया को रोकने से इनकार किया लेकिन इसकी समयसीमा और दस्तावेजों की सूची पर सवाल उठाए।

आज का प्रदर्शन इस बात का प्रतीक था कि विपक्ष, खासकर सपा और कांग्रेस, इस मुद्दे को बिहार विधानसभा चुनावों में एक बड़ा सियासी हथियार बनाने की तैयारी में है। अखिलेश यादव की सक्रियता और उनकी बयानबाजी ने सपा को इस आंदोलन में बढ़त दिलाई है, जबकि राहुल गांधी और कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे-जैसे बिहार के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विपक्ष की यह एकजुटता मतदाताओं को प्रभावित कर पाएगी, और क्या अखिलेश की रणनीति सपा को कांग्रेस से ज्यादा सियासी लाभ दिला पाएगी।

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