2027 के लिए सपा की बूथ से लेकर बिरादरी तक बड़ी तैयारी

उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर तपिश भरे मोड़ पर पहुंच चुकी है। विधानसभा चुनाव-2027 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, और सियासी दलों ने अपनी-अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। खासकर विपक्षी दल, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा), ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को घेरने के लिए कमर कस ली है। जहां कांग्रेस संगठन सृजन महाअभियान के जरिए बूथ स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है, वहीं सपा सामाजिक न्याय और जातीय समीकरणों को साधने की रणनीति पर चल रही है। इस बीच, माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तारी ने सियासत को और गर्मा दिया है। विपक्ष इसे मुस्लिम वोटबैंक को साधने के सुनहरे अवसर के रूप में देख रहा है, जबकि भाजपा इसे विपक्ष की तुष्टिकरण की राजनीति करार दे रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से जातीय और धार्मिक समीकरणों का खेल प्रमुख रहा है। 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दल अभी से रणनीति बनाने में जुट गए हैं। कांग्रेस, जो लंबे समय से यूपी में अपनी खोई जमीन तलाश रही है, ने इस बार संगठन सृजन महाअभियान के जरिए हर बूथ पर अपनी पकड़ मजबूत करने की ठानी है। पार्टी ने बुलंदशहर से इस अभियान की शुरुआत की, जहां प्रियंका गांधी ने 14 जिलों के 7400 पदाधिकारियों के साथ संवाद स्थापित किया। डोर-टू-डोर कैंपेन के जरिए कांग्रेस कार्यकर्ता जनता तक पहुंच रहे हैं, और खासकर युवा, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोटरों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी का मानना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब संगठनात्मक मजबूती ही उसका हथियार हो सकती है।

वहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी 2027 को लेकर कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीतकर अपनी ताकत का अहसास कराया था, और अब अखिलेश की नजर विधानसभा में पूर्ण बहुमत पर है। सपा ने इस बार छोटे-मझोले नेताओं को पार्टी में शामिल करने की रणनीति बनाई है। हाल ही में महेंद्र राजभर जैसे नेताओं की सपा में एंट्री ने पूर्वांचल में सियासी समीकरण बदलने के संकेत दिए हैं। महेंद्र राजभर, जो कभी सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के करीबी थे, ने 2017 में मऊ सदर से मुख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। अब उनकी सपा में शामिल होने से पूर्वांचल की 164 सीटों पर सपा की पकड़ मजबूत होने की उम्मीद है।इस बीच, उमर अंसारी की गिरफ्तारी ने यूपी की सियासत में नया तड़का लगा दिया है। पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का परिवार दशकों से सियासी प्रभाव रखता आया है। ऐसे में उनके बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तारी को विपक्ष ने योगी सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार बनाया है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने इस गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है। उन्होंने कहा कि योगी सरकार जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है। यूपी कांग्रेस के संगठन महामंत्री अनिल यादव ने भी योगी सरकार पर मुस्लिम, दलित और पिछड़ा वर्ग के उत्पीड़न का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस इस अन्याय के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ेगी।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। उन्होंने योगी सरकार पर झूठे मुकदमे लगाकर जनता का ध्यान बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे असल मुद्दों से भटकाने का आरोप लगाया। अखिलेश ने कहा कि सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है, लेकिन जनता अब इन हथकंडों को समझ चुकी है। सपा की रणनीति साफ है कि वह अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को और मजबूत करेगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने इस फॉर्मूले के दम पर जाटव और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने में कामयाबी हासिल की थी, और अब 2027 में भी यही रणनीति अपनाई जा रही है।दूसरी ओर, भाजपा इन आरोपों को सिरे से खारिज कर रही है। पार्टी प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि कांग्रेस और सपा सिर्फ वोटबैंक की राजनीति कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जनता जानती है कि ये दल अपराधियों की पैरवी में लगे हैं, जबकि योगी सरकार अपराधमुक्त और विकासोन्मुखी शासन दे रही है। बाजपेयी ने दावा किया कि 2027 में भी जनता योगी सरकार को ही सत्ता में लाएगी। भाजपा का कहना है कि वह विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी, और विपक्ष के तुष्टिकरण के आरोपों का जवाब जनता के बीच जाकर देगी।

यूपी की सियासत में मुस्लिम वोटबैंक हमेशा से अहम रहा है। राज्य में करीब 19% मुस्लिम आबादी है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है। खासकर पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटरों का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 में से 255 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था, लेकिन विपक्ष का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद भाजपा दबाव में है। एक सर्वे के मुताबिक, 54% मतदाता योगी सरकार से असंतुष्ट हैं, और विपक्ष इसी असंतोष को भुनाने की कोशिश में है।कांग्रेस और सपा की रणनीति में एक और महत्वपूर्ण पहलू है जातीय समीकरणों को साधना। सपा ने जहां गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटरों को लुभाने के लिए सामाजिक न्याय का एजेंडा अपनाया है, वहीं कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में संविधान और सामाजिक समरसता का मुद्दा उठा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी योगी सरकार पर संविधान से खिलवाड़ और एक वर्ग विशेष को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं। मौर्य ने हाल ही में अपनी जनता पार्टी की बैठक में 2027 के लिए संगठन विस्तार की रणनीति बनाई और शिक्षा व रोजगार जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की योजना बनाई।

भाजपा भी पीछे नहीं है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 2027 के लिए संगठन और सरकार में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है। खासकर गैर-यादव ओबीसी और जाटव वोटरों को साधने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। पार्टी का मानना है कि सपा की सोशल इंजीनियरिंग को काउंटर करने के लिए जातीय समीकरणों को साधना जरूरी है। इसीलिए अगला प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी समुदाय से हो सकता है, जिसमें कुर्मी, लोध या निषाद समुदाय के नेता को मौका मिल सकता है।कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजनों ने भी सियासत को नया रंग दिया है। जहां योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा की सुरक्षा और भव्यता पर जोर दिया, वहीं सपा ने इसे मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का मुद्दा बनाया। अखिलेश ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों की पहचान के मुद्दे को उठाकर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। दूसरी ओर, भाजपा ने इसे विपक्ष की हिंदू विरोधी राजनीति करार दिया।2027 का चुनाव यूपी की सियासत में मील का पत्थर साबित हो सकता है। एक तरफ योगी सरकार की कानून-व्यवस्था और विकास की उपलब्धियां हैं, तो दूसरी ओर विपक्ष का सामाजिक न्याय और तुष्टिकरण का आरोप। उमर अंसारी की गिरफ्तारी जैसे मुद्दे सियासत को और गर्म करेंगे। जनता का मिजाज क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि यूपी की सियासत में अभी और भी तूफान आने बाकी हैं।

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