लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) एक बार फिर गंभीर आरोपों के चलते चर्चा में है। हाल ही में सामने आए एक मामले में क्वीन मैरी अस्पताल में एक महिला के प्रसव के दौरान उसकी सहमति के बिना नसबंदी (Sterilization) किए जाने का आरोप लगा है। इस घटना के बाद महिला की मौत हो गई, और मामले ने तूल पकड़ लिया है। अब इस मामले में केजीएमयू के तत्कालीन कुलपति (Vice-Chancellor) समेत चार डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। पीड़ित परिवार का आरोप है कि उन्होंने नसबंदी के लिए कोई सहमति नहीं दी थी, फिर भी डॉक्टरों ने प्रसव के समय यह प्रक्रिया कर दी, जिससे महिला की हालत बिगड़ती चली गई और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
मामला लखनऊ के क्वीन मैरी अस्पताल का है, जो केजीएमयू के अंतर्गत आता है। हरदोई निवासी मृतक महिला के पति हेमवती नंदन ने आरोप लगाया कि 2022 में उनकी पत्नी को प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां सामान्य प्रसव के बाद डॉक्टरों ने बिना पूछे नसबंदी कर दी। उन्होंने बताया कि इस संबंध में न तो महिला से कोई लिखित सहमति ली गई, और न ही परिवार को जानकारी दी गई। आरोप है कि प्रसव के कुछ ही घंटों बाद महिला की तबीयत बिगड़ने लगी, लेकिन समय रहते इलाज नहीं मिला और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
इस गंभीर लापरवाही की शिकायत पुलिस और स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचने के बाद जांच शुरू हुई। इसके आधार पर गोमतीनगर थाने में केजीएमयू के तत्कालीन कुलपति, क्वीन मैरी अस्पताल की प्रमुख महिला चिकित्सक, और दो अन्य डॉक्टरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304ए (लापरवाही से मौत), 336 (दूसरों की जान को खतरे में डालना) और 338 (गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। साथ ही, मामले की जांच के लिए मेडिकल विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र कमेटी गठित की गई है, जो अस्पताल की प्रक्रिया, सहमति फॉर्म, ऑपरेशन से जुड़ी रिपोर्ट और महिला की मेडिकल हिस्ट्री की जांच करेगी।
यह मामला मेडिकल एथिक्स, महिला के अधिकारों और मरीज की सहमति (Informed Consent) के उल्लंघन से जुड़ा है। भारत के स्वास्थ्य कानूनों के अनुसार, किसी भी सर्जिकल प्रक्रिया से पहले मरीज की स्पष्ट सहमति अनिवार्य होती है। नसबंदी जैसे स्थायी ऑपरेशन के लिए तो यह और भी आवश्यक है। बिना अनुमति की गई नसबंदी न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि यह महिला की निजता और उसकी शारीरिक स्वतंत्रता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आता है।
केजीएमयू प्रशासन ने इस मामले में तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पुलिस और स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच जारी है। यह मामला न केवल चिकित्सा संस्थानों के लिए चेतावनी है, बल्कि इसने महिलाओं के अधिकार और चिकित्सा क्षेत्र की जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह देश में मेडिकल क्षेत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए एक बड़ा उदाहरण बन सकता है।