2026 पंचायत रण क्या सुहेलदेव की विरासत BJP को फिर दिलाएगी पूर्वांचल की कुर्सी?

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2026 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. भारतीय जनता पार्टी के लिए यह दोनों ही चुनाव बेहद अहम माने जा रहे हैं, खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव में उम्मीद के विपरीत मिली निराशा के बाद. इस हार ने बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर किया है. यही वजह है कि बीजेपी अब पाने सहयोगियों को भी मजबूत करने में जुटी है. इसी क्रम में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और बीजेपी के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर की भूमिका और उनके समुदाय का वोट बैंक बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हो गया है.

दरअसल, पिछलेदिनों बहराइच में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का आवरण और उनके नाम पर विजय दिवस मेले का शुभारंभ इसी दिशा में उठाया गहा अहम कदम था. इतना ही नहीं बीजेपी अलग-अलग जातियों के महापुरुषों के नाम से योजनाओं की भी शुरुआत की है. यह कदम न सिर्फ गठबंधन के सहयोगियों को मजबूत करने के लिए है बल्कि छोटे-छोटे वोटबैंक को एकजुट करने की भी है. ओम प्रकाश राजभर पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते हैं. बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी हैं. राजभर समुदाय, हालांकि उत्तर प्रदेश की आबादी का केवल 3% है, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग 125 विधानसभा सीटों और एक दर्जन लोकसभा सीटों पर प्रभावशाली है. यह समुदाय, खासकर गाजीपुर, मऊ, बलिया, और आजमगढ़ जैसे क्षेत्रों में, निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) 60 से अधिक अति पिछड़ी और दलित जातियों के हितों की वकालत करती है, जो पूर्वी यूपी में 20% से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं.2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और एसबीएसपी का गठबंधन सफल रहा था, जिसमें एसबीएसपी ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और चार पर जीत हासिल की. इस गठबंधन ने बीजेपी को गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़ी जातियों के वोटों को एकजुट करने में मदद की. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजभर ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया और 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ चले गए.

इस दौरान एसबीएसपी ने छह विधानसभा सीटें जीतीं, जो बीजेपी के लिए एक झटके के रूप में देखा गया. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने राजभर को फिर से एनडीए में शामिल किया, लेकिन उनके बेटे अरविंद राजभर घोसी सीट पर हार गए, जिससे यह सवाल उठा कि क्या राजभर अपने समुदाय के वोटों को पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में मोड़ पाएंगे?2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 255 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी, लेकिन यह जीत 2017 की तुलना में कमजोर थी. इस दौरान सपा ने 111 सीटें जीतीं, जो 2017 की 47 सीटों से काफी बेहतर प्रदर्शन था. बीजेपी की सीटों में कमी के कई कारण थे, जिनमें से एक गैर-यादव ओबीसी वोटों का सपा की ओर खिसकना था. खासकर, राजभर समुदाय और अन्य अति पिछड़ी जातियों ने सपा के ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का समर्थन किया.

2021 के पंचायत चुनाव में बीजेपी के सामने थीं कई चुनौतोयां: 2021 के पंचायत चुनाव में भी बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्रों में अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करना पड़ा. अयोध्या, मथुरा, और वाराणसी जैसे बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में सपा और निर्दलीय उम्मीदवारों ने बेहतर प्रदर्शन किया. उदाहरण के लिए, अयोध्या में 40 जिला पंचायत सीटों में से बीजेपी को केवल छह सीटें मिलीं, जबकि सपा ने 24 सीटें जीतीं. यह नतीजे 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए चेतावनी थी. राजभर के सपा के साथ जाने से बीजेपी को पूर्वी यूपी में गैर-यादव ओबीसी वोटों का नुकसान हुआ, जिससे 2022 में उनकी सीटों की संख्या काम होने की प्रमुख वजहों में से एक थी.

2024 के लोकसभा चुनाव में लगा झटका: 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा, जब उनकी सीटें 62 (2019) से घटकर 34 रह गईं, जबकि सपा ने 37 सीटें जीतीं. इस निराशाजनक एक कारण गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटों का सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर खिसकना था. बीजेपी की गठबंधन रणनीति, जिसमें राजभर को शामिल करना था, अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई.

2026 पंचायत और 2027 विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी का प्लान: 2024 की हार के बाद बीजेपी 2026 के पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का ‘सेमीफाइनल’ मान रही है. पंचायत चुनाव ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी की ताकत का आंकलन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि ये चुनाव स्थानीय मुद्दों और सामाजिक समीकरणों पर आधारित होते हैं.
बीजेपी की क्या है रणनीति?

सहयोगियों को मजबूत करना: बीजेपी अपने सहयोगी दलों, जैसे एसबीएसपी, अपना दल (एस), और निषाद पार्टी, को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है. ओम प्रकाश राजभर को 2024 में फिर से एनडीए में शामिल करने का फैसला इसी रणनीति का हिस्सा था. बीजेपी का लक्ष्य है कि राजभर के प्रभाव का उपयोग कर पूर्वी यूपी में राजभर और अन्य अति पिछड़ी जातियों के वोटों को फिर से अपने पक्ष में किया जाए.

जातिगत समीकरणों पर जोर: बीजेपी ने 2024 में गैर-यादव ओबीसी वोटों को नजरअंदाज करने की गलती की थी, खासकर कुर्मी समुदाय को टिकट वितरण में कम प्रतिनिधित्व देना. अब पार्टी इस गलती को सुधारने के लिए कुर्मी, राजभर, और अन्य ओबीसी नेताओं को प्रमुखता दे रही है. पंचायत चुनाव में स्थानीय स्तर पर इन जातियों के नेताओं को टिकट देकर बीजेपी ग्रामीण वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है.

पंचायत चुनाव में संगठनात्मक तैयारी: बीजेपी ने 2021 के पंचायत चुनाव में देखा कि सपा और निर्दलीय उम्मीदवारों ने ग्रामीण क्षेत्रों में उसकी स्थिति को चुनौती दी. 2026 के लिए पार्टी बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने, लाभार्थियों तक पहुंचने, और सरकारी योजनाओं का प्रचार करने पर जोर दे रही है. इसके लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम और संगठनात्मक बैठकें आयोजित की जा रही हैं.

सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण; बीजेपी अपनी हिंदुत्ववादी छवि को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह (2024) के बावजूद, 2024 के लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों का जातिगत आधार पर बंटवारा हुआ. बीजेपी अब पंचायत चुनाव में स्थानीय धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों को उठाकर हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश करेगी.सपा के ‘पीडीए’ को चुनौती: सपा का डीए’ फॉर्मूला 2024 में प्रभावी साबित हुआ, जिसने गैर-यादव ओबीसी, दलित, और अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट किया. बीजेपी अब राजभर जैसे नेताओं के जरिए इस फॉर्मूले को तोड़ने की कोशिश करेगी, ताकि गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़ी जातियां उसके साथ बनी रहें.

2026 पंचायत और 2027 विधानसभा चुनाव का प्रभाव: 2026 का पंचायत चुनाव बीजेपी के लिए एक लिटमस टेस्ट होगा. यदि बीजेपी ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह 2027 के लिए उसका मनोबल बढ़ाएगा. पंचायत चुनाव में सफलता बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में मदद कर सकती है. इसके विपरीत, सपा और कांग्रेस भी ‘पीडीए’ फॉर्मूले के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेंगे.

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