भारत ने तोड़ा सिंधु जल समझौताः पाकिस्तान में खेत सूखे, पेयजल संकट 

समाचार मंच प्रतिनिधि

भारत ने सोमवार 21 अप्रैल को एक बड़ा रणनीतिक और कूटनीतिक फैसला लेते हुए 64 वर्षों पुराने सिंधु जल समझौते को एकतरफा समाप्त करने की घोषणा कर दी। इस ऐतिहासिक कदम के बाद पाकिस्तान में जल संकट के हालात उत्पन्न हो गए हैं, खासकर पंजाब और सिंध प्रांत में जहां सिंचाई के लिए झेलम और चिनाब नदियों पर निर्भरता अधिक है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ यह समझौता सिंधु प्रणाली की छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज का जल बंटवारा करता है। इसमें तीन पश्चिमी नदियों का 80 फीसदी से अधिक पानी पाकिस्तान को दिया गया था, जबकि भारत को पूर्वी नदियों का उपयोग सुनिश्चित किया गया था।

भारत के इस कदम से पाकिस्तान की जल आपूर्ति व्यवस्था डगमगाने लगी है। झेलम और चिनाब से आने वाला पानी थमने लगा है जिससे हजारों एकड़ भूमि पर खड़ी फसलें सूख रही हैं। इस्लामाबाद में जल संसाधन मंत्री ने चेतावनी दी यदि यही स्थिति रही, तो कुछ ही हफ्तों में पेयजल संकट और खाद्यान्न आपूर्ति में भारी गिरावट देखी जाएगी। यह केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि राजनीतिक हमला है।
भारत ने क्यों तोड़ा समझौता

भारत सरकार ने इस कदम को पाकिस्तान की लगातार आतंकवादी गतिविधियों और समझौते के प्रावधानों के बार-बार उल्लंघन का जवाब बताया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा हम पाकिस्तान के साथ अब उन समझौतों को मान्यता नहीं दे सकते जो एकतरफा लाभ पहुंचाते हैं। जल हमारे नागरिकों का अधिकार है और अब इसका उपयोग भारत की जरूरतों के अनुसार किया जाएगा। भारत की ओर से सिंधु, झेलम और चिनाब पर जल भंडारण व विद्युत परियोजनाओं के निर्माण की प्रक्रिया भी तेज कर दी गई है।

पाकिस्तान में पानी का संकट

भारत के इस फैसले के बाद पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी हो गई है। झेलम और चिनाब से आने वाला पानी रुकने के कारण हजारों एकड़ खेत सूखने लगे हैं। इस्लामाबाद के जल प्रबंधन विभाग के अनुसार, यदि भारत अपने बांधों से पानी छोड़ना बंद रखता है, तो अगले कुछ महीनों में पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था और पेयजल सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत के इस कदम को आक्रामक और अमानवीय करार दिया है और संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि जल की आपूर्ति बहाल नहीं की गई तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और चीन ने भारत-पाकिस्तान से संयम बरतने की अपील की है। विश्व बैंक, जो कि मूल रूप से इस समझौते का गारंटर रहा है, ने भी चिंता जाहिर करते हुए दोनों देशों को वार्ता की मेज पर लौटने का सुझाव दिया है।

भारत की रणनीति क्या है

भारत ने यह स्पष्ट किया है कि यह निर्णय राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए लिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत को न केवल रणनीतिक बढ़त मिलेगी, बल्कि जल संसाधनों के बेहतर उपयोग का अवसर भी मिलेगा। पूर्व राजनयिक और सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत ने पहली बार सिंधु जल समझौते को अपने प्रभावशाली कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।

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