
भारतीय राजनीति में कुछ नेता अपने काम, कुछ अपनी छवि और कुछ अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन जब बात तथ्यों, आंकड़ों और तर्कों के साथ जवाब देने की हो, तो बीजेपी सांसद सुधांशु द्विवेदी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उन्हें लेकर अक्सर कहा जाता है कि वह “बीजेपी का गूगल” हैं। यह उपमा कोई साधारण मज़ाक नहीं, बल्कि उनकी जानकारी, तर्कशक्ति और बहस में प्रस्तुत शैली की वजह से दी गई है। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या है सुधांशु द्विवेदी में, जो उन्हें “चलता-फिरता गूगल” बना देता है?
सुधांशु द्विवेदी जब भी किसी न्यूज़ चैनल की बहस में दिखाई देते हैं या किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हैं, तो उनकी जुबान से निकला हर शब्द सटीक आंकड़ों और दस्तावेजों पर आधारित होता है। चाहे मामला इतिहास का हो, संविधान का हो, राजनीति का हो या समकालीन घटनाओं का वह हर क्षेत्र की गहरी जानकारी रखते हैं। उनके पास विपक्षी दलों के पुराने बयानों से लेकर आज के मुद्दों तक हर सवाल का तर्कपूर्ण जवाब होता है। यही कारण है कि उन्हें सुनने वाले कई बार आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि कोई व्यक्ति इतनी सारी जानकारी कैसे रख सकता है।
सुधांशु द्विवेदी की खासियत यह है कि वह किसी भी सवाल से नहीं घबराते। बल्कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जब डिबेट के दौरान विपक्षी प्रवक्ता या एंकर सवाल पूछते हैं, तो वह न केवल उसका जवाब देते हैं बल्कि उस सवाल से जुड़े और भी कई पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डालते हैं। वह न सिर्फ बीजेपी के दृष्टिकोण को मजबूती से रखते हैं बल्कि विपक्ष के दावों की गहराई से जांच कर उन्हें तथ्यों के बल पर खारिज भी करते हैं। उनका तर्क इतना व्यवस्थित और सूचनात्मक होता है कि सामने वाला अक्सर चुप हो जाता है।
आज की राजनीति में अक्सर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। लेकिन सुधांशु द्विवेदी की शैली कुछ अलग है। वह भावनात्मक भाषा की जगह तथ्यों और संविधानिक संदर्भों से बात करते हैं। चाहे बात 370 हटाने की हो, राम मंदिर निर्माण की हो, या CAA जैसे विवादास्पद मुद्दों की वह हर विषय को तार्किक दृष्टिकोण से रखते हैं और किसी भी तरह की उत्तेजना से दूर रहते हुए अपनी बात को मजबूती से पेश करते हैं। यही कारण है कि वह एक पढ़े-लिखे, शोधपरक और गंभीर नेता के रूप में देखे जाते हैं।
सुधांशु द्विवेदी की यह खासियत केवल टीवी डिबेट तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया पर भी उनके भाषणों और बयानों के क्लिप वायरल होते रहते हैं। यूजर्स उन्हें “गूगल बाबा”, “बीजेपी का डेटा मास्टर”, या “फैक्ट मैन” जैसे नामों से पुकारते हैं। खास बात यह है कि उनके वीडियो केवल बीजेपी समर्थकों के बीच ही नहीं, बल्कि न्यूट्रल दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय होते हैं, क्योंकि वे बात को शांति और सटीकता से रखते हैं। उनकी यह इमेज उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती है।
सुधांशु द्विवेदी का बैकग्राउंड भी उनकी इस पहचान को मजबूत करता है। वह मूलतः एक पत्रकार रहे हैं और राजनीति में आने से पहले उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबा अनुभव हासिल किया है। यही कारण है कि उन्हें मीडिया की भाषा, सवालों की प्रकृति और जनता की सोच की अच्छी समझ है। उन्होंने मीडिया की बारीकियों को समझते हुए राजनीति में प्रवेश किया और अपने तर्कों और तथ्यों की बदौलत बीजेपी में प्रवक्ता की भूमिका निभाई। बाद में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। इस पूरे सफर में उन्होंने अपनी पहचान एक गंभीर, जानकार और तथ्य आधारित नेता के रूप में बनाई।
हालांकि राजनीतिक मंचों पर तीखी बहसें आम बात हैं, लेकिन सुधांशु द्विवेदी के विरोधी भी उनकी जानकारी और प्रस्तुति शैली की तारीफ करते हैं। कई बार डिबेट के दौरान उनके सामने विपक्षी प्रवक्ता असहज हो जाते हैं क्योंकि वह उनके ही पुराने बयानों या सरकारी दस्तावेजों को सामने रख देते हैं। उनकी यह शैली उन्हें राजनीतिक बहसों का एक मजबूत चेहरा बनाती है।
आज के समय में जब राजनीति में भावनात्मक अपील और नारों का बोलबाला है, तब सुधांशु द्विवेदी जैसे नेता लोकतंत्र के लिए जरूरी हैं। वे बताते हैं कि एक नेता केवल भाषण देने वाला नहीं, बल्कि जानकारी, जागरूकता और जवाबदेही से जुड़ा व्यक्ति होना चाहिए। उनके जैसा नेता संसद में और मीडिया में ऐसी बहसों को जन्म देता है जो केवल शब्दों की जुगलबंदी नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाली होती हैं।
कुल मिलाकर सुधांशु द्विवेदी की तुलना गूगल से करना अतिशयोक्ति नहीं है। वह वास्तव में एक चलता-फिरता डाटा सेंटर हैं, जो भारतीय राजनीति, संविधान, इतिहास और वर्तमान मामलों की गहरी समझ रखते हैं। उनकी यह शैली उन्हें न केवल बीजेपी के भीतर बल्कि देश भर के राजनीतिक दर्शकों के बीच अलग पहचान दिलाती है। आज जब राजनीति में शोरगुल अधिक और तथ्य कम होते जा रहे हैं, ऐसे में सुधांशु द्विवेदी जैसे नेताओं की जरूरत और अहमियत और भी बढ़ जाती है।