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मुंबई 26/11 आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड तहव्वुर हुसैन राणा कभी भी भारत पहुंच सकता है। अमेरिका से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया पूरे होने के बाद उसे भारतीय सुरक्षा अधिकारियों के कस्टडी में विमान से भारत लाया जा रहा है। 10 अ्रपैल की सुबह राणा भारत पहुंच जायेगा।राणा के भारत आने के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में सौंपा जाएगा। दिल्ली और मुंबई की जेलों में उसकी निगरानी और सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं, ताकि अमेरिका की न्यायिक सिफारिशों के अनुसार उसे पूरी सुरक्षा और निगरानी में रखा जा सके।
भारत की ओर से राणा के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया वर्ष 2019 में शुरू हुई थी। उस समय केंद्र सरकार ने अमेरिका से इस संबंध में औपचारिक मांग की थी। इसके बाद भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों और कूटनीतिक प्रयासों का नतीजा यह रहा कि अमेरिकी अदालत ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया। इस वर्ष की शुरुआत में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस प्रत्यर्पण की पुष्टि करते हुए कहा था कि तहव्वुर राणा को भारत में न्याय का सामना करना होगा। यह मोदी सरकार की लगातार कोशिशों और अमेरिकी प्रशासन से कूटनीतिक समन्वय का परिणाम है।
तहव्वुर राणा पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सक्रिय सदस्य रहा है। उसने अपने सहयोगी डेविड कोलमैन हेडली की मदद की, जिसने 26/11 से पहले भारत आकर हमलों के संभावित ठिकानों की रेकी की थी। राणा ने हेडली को पासपोर्ट और जरूरी दस्तावेज दिलवाए, जिससे वह भारत में बिना किसी रोक-टोक के घूम सका और लश्कर-ए-तैयबा को अहम सूचनाएं दे सका। इस पूरे हमले की योजना लश्कर और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मिलकर बनाई थी, जिसमें राणा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हमले के दिन यानी 26 नवंबर 2008 को जब मुंबई के कई स्थानों पर आतंकी हमला हो रहा था, उस समय राणा अमेरिका में बैठकर घटनाक्रम की पल-पल की जानकारी ले रहा था। जांच में सामने आया कि वह मारे गए लोगों की संख्या पर खुशी जाहिर कर रहा था और कह रहा था कि इन आतंकियों को पाकिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान मिलना चाहिए। राणा का यह रवैया उसकी कट्टर सोच और आतंक के प्रति झुकाव को स्पष्ट करता है।
राणा का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। उसने आर्मी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर की पढ़ाई की और लगभग दस वर्षों तक पाकिस्तान की सेना में सेवा दी। इसके बाद वह कनाडा चला गया और वहीं का नागरिक बन गया, लेकिन आईएसआई और लश्कर के साथ उसके संबंध पहले की तरह कायम रहे। वह आईएसआई के मेजर इकबाल का नजदीकी माना जाता है, जिसने मुंबई हमलों की साजिश रची थी।
जांच एजेंसियों के मुताबिक, तहव्वुर राणा हमले से कुछ दिन पहले 11 से 21 नवंबर 2008 तक भारत में मौजूद था। वह दुबई के रास्ते भारत आया था और मुंबई के पवई इलाके में स्थित रेनेसां होटल में ठहरा था। हमले से ठीक पहले ही वह भारत से निकल गया था, जिससे यह साफ होता है कि उसकी भूमिका सिर्फ योजना तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह ज़मीनी स्तर पर भी सक्रिय था।
तहव्वुर राणा को 2009 में अमेरिका की एफबीआई ने उस समय गिरफ्तार किया, जब वह डेविड हेडली के साथ डेनमार्क के एक अखबार पर आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। इसी दौरान जांच एजेंसियों को 26/11 हमले में उसकी भूमिका के सबूत मिले। अमेरिका ने पहले ही हेडली को सजा सुना दी है, लेकिन अब भारत में राणा के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की जा सकेगी।
राणा के भारत आगमन की संपूर्ण प्रक्रिया पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और गृह मंत्रालय लगातार नजर बनाए हुए हैं। उसे कुछ हफ्तों तक छप्। की हिरासत में रखा जाएगा, ताकि उससे पूछताछ कर 26/11 हमले से जुड़े और भी अहम सुराग हासिल किए जा सकें। उम्मीद की जा रही है कि राणा से पूछताछ के बाद पाकिस्तान और आईएसआई की साजिशों से जुड़ी कई नई जानकारियां सामने आ सकती हैं, जो इस केस में अब तक अज्ञात पहलुओं को उजागर करेंगी।
भारत की न्याय प्रणाली अब राणा के चेहरे से नकाब हटाकर उसे उसके अपराधों की सजा दिलाने की तैयारी कर रही है। यह पूरी प्रक्रिया भारत की आतंक के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति का एक अहम उदाहरण बन सकती है।