वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई अब 20 मई को

समाचार मंच

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई को 20 मई तक के लिए स्थगित कर दिया है। इस निर्णय ने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में एक बार फिर से बहस को तेज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह संशोधन अधिनियम न केवल संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह संपत्ति के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

इस मामले में दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ अधिनियम में किए गए हालिया संशोधन से वक्फ बोर्ड को अत्यधिक अधिकार मिल गए हैं, जिससे आम नागरिकों की संपत्ति अधिकारों पर संकट उत्पन्न हो गया है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह संशोधन निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने की प्रक्रिया को और भी आसान बना देता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे प्रशासनिक आदेशों के जरिये लोगों की जमीनें वक्फ बोर्ड के हवाले की जा सकती हैं।

इस पर केंद्र सरकार की तरफ से दलील दी गई है कि वक्फ संशोधन अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के संरक्षण, प्रबंधन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह संशोधन किसी समुदाय के पक्ष में नहीं, बल्कि देश की विरासत और धार्मिक संस्थानों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक ट्रस्टों को एकतरफा शक्ति देता है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 300-। (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई मामलों में सामान्य नागरिकों की संपत्ति को बिना उचित प्रक्रिया के वक्फ घोषित कर लिया गया है और संशोधन के बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह मामला संविधानिक दृष्टिकोण से अत्यंत गंभीर है और इसमें सभी पक्षों की राय लेना आवश्यक है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक किसी प्रकार के प्रशासनिक आदेशों के माध्यम से विवादित संपत्तियों को जब्त करने या किसी भी पक्ष को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

अदालत का यह अंतरिम फैसला उन हजारों लोगों के लिए राहत लेकर आया है जो इस संशोधन अधिनियम के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं। अब सभी की निगाहें 20 मई पर टिकी हैं, जब सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील और बहुचर्चित मुद्दे पर आगे की सुनवाई करेगा। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश में धर्म, संपत्ति और न्याय के बीच संतुलन की परीक्षा भी है।

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